एक बार पृथ्वी ने भगवान वराह से पूछा-भगवन् ! मुनिवर रैभ्य ने राजा वसुके सिद्धि प्राप्त होनेकी बातको सुनकर क्या किया? इस विषयमें मुझे बड़ा कौतूहल हो रहा है। आप उसे शान्त करनेकी कृपा करें।
भगवान वराह ने कहा-पृथ्वी! तपोधन रैभ्यमुनिने जब राजा वसुके सिद्धि प्राप्त होनेकी बात सुनी, तो वे पवित्र पितृतीर्थ गया जा पहुँचे। वहाँ जाकर उन्होंने भक्तिपूर्वक पितरोंके लिये पिंडदान किया। इस प्रकार पितरोंको तृप्त करके उन्होंने अत्यन्त कठिन तपस्या आरम्भ कर दी।
परम मेधावी रैभ्यके इस प्रकार दुष्कर तपका आचरण करते समय एक महायोगी विमान पर आरूढ़ होकर उनके पास पधारे। उनका शरीर तेजसे देदीप्यमान था। उन महायोगी का वह परम उज्ज्वल विमान सूर्यके समान उद्भासित हो रहा था। त्रसरेणुके समान सूक्ष्म उस विमान पर विराजमान वह तेजोमय पुरुष भी आकार में परमाणु के तुल्य प्रतीत होता था। उस तेजोमय पुरुष ने कहा-'सुव्रत! तुम | किस प्रयोजनसे इतनी कठिन तपस्या कर रहे हो
' इतना कहकर वह दिव्य पुरुष बढ़ने लगा और उसने अपने शरीरसे पृथ्वी एवं आकाशके मध्यभागको व्याप्त कर लिया। सूर्यके समान देदीप्यमान उसके विमानने भी सम्पूर्ण भूगोल और खगोल को एवं साथ-ही-साथ विष्णु लोक को भी व्याप्त कर लिया। तब रैभ्यने अत्यन्त आश्चर्य युक्त होकर उस योगीसे पूछा-
'योगेश्वर! आप कौन हैं? मुझे बतानेकी कृपा करें ' उस तेजोमय पुरुषने कहा-रैभ्य! मैं ब्रह्माजी का मानस पुत्र सनत्कुमार हूँ। रुद्र मेरे ज्येष्ठ भ्राता हैं। मेरा जनलोकमें निवास है। तपोधन! तुम्हारे पास प्रेमके वशीभूत होकर मैं आया हूँ।
विशाल नाम से विख्यात एक राजा हो चुके हैं उनके नगरका नाम भी विशाल ही था। वे राजा नि:संतान थे, इससे शत्रुओंको पराजित करनेवाले उन परम धैर्यशाली राजा विशाल के मन में पुत्र-प्राप्ति की इच्छा हुई। अत: उन्होंने श्रेष्ठ ब्राह्मणों को बुलाकर उनसे पुत्र-प्राप्तिका उपाय पूछा। उन उदारचेता ब्राह्मणों ने कहा-'राजन्! तुम पुत्र-प्राप्तिके निमित्त गया में जाकर पुष्कल अन्नदान करके पितरोंको तृप्त करो। ऐसा करनेसे तुम्हें अवश्य ही पुत्र प्राप्त होगा|वह महान् दानी एवं सम्पूर्ण भूमण्डलपर शासन करनेवाला होगा।'
ब्राह्मणों के ऐसा कहनेपर विशाल-नरेशके अङ्ग-प्रत्यङ्ग हर्षसे खिल उठे। तदनन्तर सूर्य जब मघा नक्षत्र पर आये, उस समय प्रयत्नपूर्वक गया तीर्थ में जाकर उन नरेशने विधि-विधानके साथ भक्तिपूर्वक पितरोंके लिये पिंडदान किया सहसा उन्होंने आकाशमें श्वेत, पीत एवं कृष्ण वर्णके तीन श्रेष्ठ पुरुषों को देखा। उनको देखकर राजाने पूछा आप लोग कौन हैं?'
श्वेत पुरुष ने कहा-राजन्! मैं तुम्हारा पिता सित हूँ। मेरा नाम तो सित है ही, मेरे शरीरका वर्ण भी सित (श्वेत) है, साथ ही मेरे कर्म भी सित (उज्ज्वल) हैं। (मेरे साथ) ये जो लाल | रंग के पुरुष दिखायी देते हैं, मेरे पिता हैं इन्होंने बड़े निष्ठुर कर्म किये हैं ये ब्रह्महत्यारे और पापाचारी रहे है और इनके बाद ये जो तीसरे सज्जन हैं, ये तुम्हारे प्रपितामह हैं इनका नाम अधीश्वर है। ये धर्म और वर्णसे भी कृष्ण हैं। उन्होंने पूर्व जन्म में अनेक वयोवृद्ध ऋषियों का वध किया है। ये दोनों पिता और पुत्र अवीचि नामक नरक में पड़े हुए हैं; अत: ये मेरे पिता और ये दूसरे इनके पिता जो दीर्घ कालतक काले मुखसे युक्त हो नरकमें रहे हैं और मैं, जिसने अपने शुद्ध कर्म के प्रभाव से इन्द्र का परम दुर्लभ सिंहासन प्राप्त किया था-तुझ मन्त्रज्ञ पुत्र के द्वारा गया में पिंडदान करने से-तीनों ही बलात् मुक्त हो गये