२२. क्षार-कर्दभ - जो लोग अपने जीवन में ब्राह्मणों, पूज्यों एवं गुरुजनों का यथोचित सत्कार न करके उनका अपमान या तिरस्कार करते हैं, उन्हें इस नर्क में लाकर भयंकर कष्ट दिये जाते हैं।
२३. रक्षोगण-भोजन - यह नर्क अत्यन्त भयंकर नकों में से है। यहाँ उन लोगों को लाया जाता है जो बिना किसी वैध (जैसे युद्ध आदि) कारण के किसी मनुष्य का वध करते हैं, पुरुष अपनी पत्नी का या स्त्री अपने पति का वध करती हैं अथवा स्त्री पुरुष अपनी काम वासना की पूर्ति में बाधक समझकर अपने पति या पत्नी का वध करते हैं। इस प्रकार अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए प्राणी राक्षस बनकर उन वध कर्ताओं को दण्ड देने के हेतु कुछ समय के लिए आते हैं तथा भयंकर शस्त्रों से उन्हें पीड़ा देते हैं।
२४. शूलप्रोत - जो लोग किसी व्यक्ति को मिथ्या विश्वास दिलाकर छलपूर्वक उसका वध करते हैं, अथवा अपना बन्दी बनाकर मानसिक एवं शारीरिक यातनाएँ देते हैं, उनको मृत्यु के पश्चात् शूलप्रोत नर्क में अपने कुकर्मों का दण्ड भुगतने के लिए लाया जाता है। यमदूत उसके शरीर में अनेक शूल (भाले) चुभो कर आकाश में लटका देते हैं | जहाँ नुकीली चोंच वाले भयंकर हिंसक पक्षी चोंच मार-मार कर उन्हें मर्मान्तक पोड़ा पहुंचाते हैं।
२५. दंदशूल - दंदशूल नर्क में भयानक विषैले सर्प एवं अजगर निवास करते हैं। यहाँ उन जीवात्माओं को लाया जाता है। जिन्होंने अपने जीवन में केवल द्वेष के कारण निर्दोष व्यक्तियों को कष्ट दिया होता है। ये अजगर तथा सर्प उन्हें काटते हैं, निगल जाते हैं और फिर उगल देते हैं। इसके पश्चात् फिर निगलते तथा उगलते हैं। यह क्रम चलता रहता है।
२६. अवर निरोधन - बड़े-बड़े गड्ढों वाला नर्क है । इसमें सदैव अन्धकार रहता है। उन गड्ढों में से सदैव विषैली गैस निकलती रहती है जिससे इसमें रखे जाने वाले जीव का दम घुटता है। इसमें ऐसे पापी रखे जाते हैं जो अपने जीवन काल में लोगों को गुफाओं अथवा बन्द कमरों में बन्दी बनाकर रखते तथा उन्हें अकारण ही यातना देते हैं।
२७. पर्यावर्न - पर्यावर्न नर्क में ऐसे पापियों को रखाजाता है जो घर आये अतिथियों का तिरस्कार अथवा अपमान करते हैं। उनके साथ अनुचित संभाषण करते हैं। इस नर्क में भयंकर वज्र सदृश नुकीली चोंचवाले पक्षी रहते हैं जो पापियों को नोच-नोच कर खाते हैं।
२८. सूचिमुख - जो लोग धनवान एवं सम्पन्न होते हुए भी अधिक धन पाने की लालसासे दूसरे लोगों से द्वेष रखते हैं। अभिमान के वशीभूत होकर बिना किसी कारण के उन्हें नीचा दिखाने का प्रयत्न करते हैं । उन्हें सूचीमुख नरक में डाला जाता है जहाँ यमदूत उनके विभिन्न अंगों को दर्जी की भांँति सुई से सीकर उन्हें पीड़ा पहुंचाते हैं।
सूतजी बोले-ये अट्ठाईस प्रमुख नरक हैं । इनके अतिरिक्त छोटे-मोटे असंख्य नर्क और हैं। उन नर्को में ऐसे पापी और कुकर्मी जाते हैं जिनके अच्छे कर्मों की संख्या बुरे कर्मों से अधिक होती है। इसलिए वे थोड़े समय तक नरक यातना भोगकर अपने शुभ कर्मों का फल भोगने के लिए चले जाते है। इसके पश्चात् वे उन्हीं कर्मों के अनुकूल योनियों में जन्म लेते हैं । इस संसार में कुल चौरासी लाख योनियाँ हैं । इन योनियों में मनुष्य, पशु, पक्षी, रेंगने वाले कीड़े-मकोड़े सभी सम्मिलित हैं। इतना ही नहीं पेड़-पौधों, पाषाणों, चट्टानों; तात्पर्य यह है कि सभी निर्जीव-सजीवों का समावेश चौरासी लाख योनियों में हो जाता है। समस्त योनियों में मानव योनि सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि इसमें मनुष्य अपनी विवेक-बुद्धि का उपयोग करके ऐसे सत्कर्म कर सकता है जो उसे मोक्ष की ओर ले जा सकता है। इस योनि में उसे कर्म करने की अधिक स्वतन्त्रता प्राप्त है जिसके द्वारा वह चाहे तो ऊर्ध्व गति को प्राप्त कर सकता है और न चाहे तो अधोगति को प्राप्त होता हुआ नर्क तक पहुंच जाता है।
सम्पूर्ण नर्को का शासन यमराज के हाथों में है। उनके न्यायागार के चार द्वार हैं जो भिन्न-भिन्न कोटि के प्राणियों के लिए निश्चित हैं। प्रथम द्वार से देवगण, दूसरे से ऋषि-मुनि महात्मा, तीसरे से पुण्यात्मा मनुष्य और चौथे द्वार से पापी लोग प्रवेश करते हैं। देवताओं को यमराज देवताओं के सदृश दिखाई देते हैं। ऋषि-मुनियों को इनका स्वरूप अलौकिक प्रतीत होता है। पुण्यात्मा उन्हें धर्मराज के रूप में देखते हैं तथा पापी एवं कुकर्मी लोग उन्हें अत्यन्त लोमहर्षक रूप में देखते हैं।
यमराज के दरबार में चित्रगुप्त मुख्य अमात्य के रूप में कार्य करते हैं। वे प्रत्येक व्यक्ति के पाप-पुण्यों का लेखा रखते हैं। तथा यमराज को आज्ञानुसार उनका विवरण उन्हें सुनाते हैं जिन्हें सुनकर यमराज जीवात्मा के लिए उचित दण्ड विधान करके यमदूतों को आज्ञा देते हैं कि वे उन्हें विशिष्ट नर्को में ले जायें। जो पुण्यात्मा होते हैं, उन्हें सफेद वस्त्र धारण करने वाले दूत उनके पुण्यों एवं सत्कर्मों के आधार पर धर्मराज के निर्देशानुसार स्वर्ग को ले जाते हैं जहाँ वे नाना प्रकार के सुखों का उपभोग करते हैं। धर्मात्मा जीवात्माओं को धर्मराज के दूत सम्मानपूर्वक ले जाते हैं जबकि पापियों को यमदूत रस्सियों से बाँधकर मार्ग में अनेक प्रकार की यातनाएँ देते हुए घसीट कर ले जाते हैं।
हे ऋषियो ! इसलिए यह परम आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति प्रभु में पूर्ण निष्ठा एवं भक्ति रखते हुए सदैव अच्छे कर्म करे, कुकर्मों से बच्चे । अच्छे कर्म भी वह अहंकार रहित होकर निष्काम भाव से करते हुए भगवान को अर्पित कर दे। ऐसा ही करके इस भवसागर से जीवात्मा का उद्धार हो सकता है और अन्त में मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।