स्त्रियों के शुभा शुभ-लक्षणों का वर्णन
ब्रह्माजी बोले-कार्तिकेय स्त्रियों के जो लक्षण मैंने पहले नारदजीको बतलाये थे, उन्हीं शुभाशुभ-लक्षण को बताता हूँ। आप सावधान होकर सुने-शुभ मुहूर्त में कन्या के हाथ, पैर, उंगली, नख, हाथ की रेखा, जंघा , कटी, नाभि, ऊरु, पेट, पीठ, भुजा, कान, जिह्वा, ओठ, दाँत, कपोल, गला, नेत्र, नासिका, ललाट, सिर, केश, स्वर, वर्ण इन सबके लक्षण देखे। जिसकी ग्रीवा में रेखा हो और नेत्र का प्रान्त भाग कुछ लाल हो, वह स्त्री जिस घरमें जाती है. उस घरकी प्रतिदिन वृद्धि होती है। जिसके ललाट में त्रिशूल का चिन्ह होता है, वह कई हजार दासियोंकी स्वामिनी होती है। जिस स्त्री के राजहंस के समान गति, मृग के समान नेत्र, मृगके समान ही शरीरका वर्ण, दाँत बराबर और श्वेत होते हैं, वह उत्तम स्त्री होती है। मेढकके समान कुक्षिवाली एक ही पुत्र उत्पन्न करती है और वह पुत्र राजा होता है। हंस के समान मृदु वचन बोलने वाली, शहद के समान पिङ्गल वर्णवाली स्त्री धन-धान्य से संपन्न होती है, उसे आठ पुत्र होते हैं। जिस स्त्री के लंबे कान, सुन्दर नाक और भौहे धनुष के समान टेढ़ी होती है, वह अतिशय सुखका भोग करती है। तन्वी, श्यामवर्णा, मधुर भाषिणी, शङ्खके समान अतिशय स्वच्छ दांतों वाली, स्निग्ध अंगों से समन्वित स्त्री अतिशय ऐश्वर्यको प्राप्त करती है। विस्तीर्ण जंघाओंवाली, वेदी के समान मध्यभागवाली, विशाल नेत्रोवाली स्त्री रानी होती है।
कछुए के समान कमरवाली स्त्री लक्ष्मीवान होती हैं ।
जिस स्त्रीयों के वाम स्तन पर, हाथ में, कान के ऊपर या गले पर तिल अथवा मसा होता है, उस स्त्री को प्रथम पुत्र उत्पन्न होता है। जिस स्त्री के पैर रक्तवर्ण हो. ठेहुने बहुत ऊँचे न हों, छोटी एड़ी हो, परस्पर मिली हुई सुन्दर अगुलियाँ हो, लाल नेत्र हो-ऐसी स्त्री अत्यंत सुख भोग करती है जिसके पैर बड़े-बड़े हों, सभी अंगों में रोम हों, छोटे और मोटे हाथ हो.वह दासी होती है। जिस स्त्री के पैर उत्कट हो, मुख विकृत हो, वह शीघ्र अपने पतिको मार देती है।
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जिस स्त्री के हाथ और पैर के तालु कोमल और पसीने से रहित हो उसमें मत्स्य, अंकुश, व्रज, कमल, जव,खड्ग, ध्वज,स्वस्तिक, हाथी, घोड़ा, रथ,स्तंभ, तीर,कुंडल, चामर, पर्वत, तोरण, छत्र,वेदी जैसे चिन्ह हो वह शुभ लक्ष्णोंवाली और रानी कहलाती हैं । लंबी अंगुलीया तथा गुप्त मणि बंधवाले हाथ, समान हथेलियां स्त्री को सौभाग्य, धन,और पुत्रसुख देता है ।स्त्री के हाथ में मणिबंध से मध्यमा अंगुली तक की रेखा तथा ऊर्ध्व रेखा राजसुख देता है । कनिष्ठका के मूल से तथा मध्यमा के बीच में रहनेवाली रेखा लंबी आयु देती है ।
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अंगूठे के मूलमें बडी रेखायें पुत्र की संख्या तथा छोटी रेखायें कन्या की संख्या बतलाती है । ये रेखायें टूटी हुई हो तो संतान अल्पायु होती है और पूर्ण एवं सीधी हो तो संतान दीर्घायु होती हैं । जो स्त्री पवित्र, पतिव्रता, देवता, गुरु और ब्राह्मणों के भक्त होती है, वह मानुषी कहलाती है। नित्य स्नान करनेवाली, सुगन्धित द्रव्य लगानेवाली, मधुर वचन बोलने वाली, थोड़ा खानेवाली, कम सोने वाली और सदा पवित्र रहनेवाली स्त्री देवता होती है।
गुप्तरूपसे पाप करनेवाली, अपने पापको छिपाने वाली, अपने हृदय के अभिप्राय को किसी के आगे प्रकट न करनेवाली स्त्री मार्जारी-संज्ञक (बिलाव) होती है। कभी हंसनेवाली, कभी क्रीडा करनेवाली, कभी क्रोध करनेवाली, कभी प्रसन्न रहनेवाली तथा पुरुषोंके मध्य रहनेवाली स्त्री गर्दभी-श्रेणी की होती है। पति और बान्धवोंके द्वारा कहे गये हितकारी वचनको न मानने वाली, अपनी इच्छाके अनुसार विवाह करनेवाली स्त्री आसुरी कही जाती है। बहुत सोनेवाली, बहुत बोलने वाली, खोटे वचन बोलनेवाली, पतिको मारनेवाली स्त्री राक्षसी-संज्ञक होती है। शौच, आचार और रूपसे रहित, सदा मलिन रहनेवाली, अतिशय भयकर स्त्री पिशाची कहलाती है। अतिशय चंचल स्वभाववाली, चपल नेत्रों वाली, इधर-उधर देखने वाली, लोभी नारी वानरी-संज्ञक होती है चंद्रमुखी, मदमत्त हाथी के समान चलनेवाली, रक्तवर्णके नखोवाली, शुभ लक्षणों से युक्त हाथ-पैरवाली स्त्री विद्याधरी-श्रेणी की होती है। वीणा, मृदङ्ग, बंशी आदि वाद्यों के शब्दों को सुनने तथा पुष्पों और विविध सुगन्धित द्रव्यों में अभिरुचि रखनेवाली स्त्री गंधर्वी -श्रेणी की होती है। जिस स्त्री की कनिष्ठका और अनामिका भूमि को स्पर्श न करें, तर्जनी अंगूठे से लंबी हो वो स्त्री अशुभ होती हैं । जिस की पींडीया खींची हुई हो नाडीओं से व्याप्त, पुष्ठ जांघ ,रोमवाली नाभि तथा घडे जैसा पेट जिस स्त्री के हो वह दुःख भोगनेवाली होती है । मंजर (पीली) आखोंवाली स्त्रीयाँ दुष्ट स्वभाव की होती हैं । जिस स्त्री के हाथ सूखे नाडीसे युक्त और छोटे होते है वह दुःखी तथा निर्धन होती है । जो स्त्री अंत्यन्त लंबी हो तथा उपले ओंठ पे रोम हो वह स्त्री पति को शुभ फल नहीं देती। जिस स्त्री के दांत बडे बहार निकले हुए हो तथा गोंद (पेढां) काला हो वह स्त्री चोर होती हैं । जिस स्त्रीके उपर का ओंठ ऊंचा हो, केश रूक्ष हो वह पीडादायक और अशुभ होती हैं ।
जिस स्त्री की हाथ या पैर की अंगुलीया कटी हुई हो वह आलसी, कामचोर, और झगड़ालू होती हैं ।जिस स्त्री के नेत्र छोटे होते है उसके उपर विश्वास नहीं करना चाहिए वह झूठी होती हैं और जो बात-बात में रोती है वह तो बिलकुल भी विश्वासपात्र नहीं है वह गिरगिट- संज्ञक होती हैं । जो स्त्री बात-बात में दूसरे के हाथ में ताली देती है या फिर ताली मांगती हैं वह स्त्री कामचोर, झगड़ालू और खुद को सबसे अधिक होशियार समझनेवाली होती है । जो स्त्री बात करते समय सामने वालों को न देखकर दूसरी ओर देखकर या उपर की ओर देखतीं हैं वह झूठी , षड़यंत्र करने वाली और व्याभिचारीणी होती है । जो स्त्री अपने पैरों को घसीटकर चलती हैं वह खुद के भाग्य को तो बिगड़ती है पिता और पति के भाग्य को भी बिगाड़ने वाली होती हैं ।
सुमन्तु मुनिने कहा-राजन् ! ब्रह्माजी इस प्रकार स्त्री और पुरुषों के लक्षणों को स्वामी कार्तिक को बतलाकर अपने लोक को चले गये।