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27 / May / 2020


पीपल की पूजा करने का माहात्म्य

एक बार व्यास जी से ब्राह्मणों ने पूछा-संसार में कौन सा वृक्ष लगाने से मनुष्योंको पुण्य फल की प्राप्ति होती है और जो वृक्षों में सबसे ज्यादा पुण्यों को प्राप्त कराने वाला होता है ।

तब व्यास जी ने कहा - वृक्षो में श्रेष्ठ है पीपल का वृक्ष।


जलाशयके समीप पीपल का वृक्ष लगाकर मनुष्य जिस फलको प्राप्त करता है, वह सैकड़ों यज्ञों से भी नहीं मिल सकता। प्रत्येक पर्वके दिन जो उसके पत्ते जलमें गिरते हैं, वे पिण्डके समान होकर पितरोंको अक्षय तृप्ति प्रदान करते हैं तथा उस वृक्ष पर रहने वाले पक्षी अपनी इच्छाके अनुसार जो फल खाते है, उसका ब्राह्मण भोजन के समान अक्षय फल होता है। गर्मी के समय में गौ, देवता और ब्राह्मण जिस पीपलकी छायामें बैठते हैं, उसे लगाने वाले मनुष्य के पितरों को अक्षय स्वर्गकी प्राप्ति होती है।

अतः सब प्रकारसे प्रयत्न करके पीपल का वृक्ष लगाना चाहिये। एक वृक्ष लगा देनेपर भी मनुष्य स्वर्गसे भ्रष्ट नहीं होता।

रसो के क्रय-विक्रय के लिये नियत रमणीय स्थान पर, मार्ग में और जलाशयके किनारे जो वृक्ष लगाता है, वह मनोरम स्वर्ग को प्राप्त होता है। पीपल के वृक्ष की पूजा करनेसे जो पुण्य होता है, उसे बतलाता हूं: सुनो। जो मनुष्य स्नान करके पीपल के वृक्ष का स्पर्श करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है। जो बिना नहाये पीपल को स्पर्श करता है, उसे स्रान जन्य फल की प्राप्ति होती है अश्वत्थ के दर्शन पाप का नाश और स्पर्श से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है| ,

उसकी प्रदक्षिणा करनेसे आयु बढ़ती है। अश्वत्थ वृक्ष का हविष्य, दूध, नैवेद्य, फूल, धूप और दीपक अर्पण करके मनुष्य स्वर्ग से भ्रष्ट नहीं होता

पीपल की जड़के पास बैठकर जो जप, होम, स्तोत्र-पाठ और मंत्र मन्त्रादिके अनुष्ठान किये जाते हैं, उन सबका फल करोड़ गुना होता है। जिसकी जड़ में श्री विष्णु, तने में भगवान् शङ्कर तथा अग्रभागमें साक्षात् ब्रह्माजी स्थित है, उसे संसारमें कौन नहीं पूजेगा। सोमवती अमावस्या मौन होकर स्नान और एक हजार गौओंका दान करनेसे जो फल प्राप्त होता है, वही फल अश्वत्थ वृक्ष को प्रणाम करनेसे मिल जाता है।

अश्वत्थ के सात बार प्रदक्षिणा करनेसे दस हजार गौओंके और इससे अधिक अनेकों बार परिक्रमा करनेपर करोड़ों गौओंके दान का फल प्राप्त होता है।

अतः पीपल वृक्ष की परिक्रमा सदा ही करनी चाहिये। पीपल के वृक्ष के नीचे जो फल, मूल और जल आदिका दान किया जाता है, वह सब अक्षय होकर जन्म-जन्मान्तरोंमें प्राप्त होता रहता है। पीपल के समान दूसरा कोई वृक्ष नहीं है। अश्वत्थ वृक्ष के रूप में साक्षात् श्रीहरि ही इस भूतलपर विराजमान हैं। जैसे संसारमें ब्राह्मण, गौ तथा देवता पूजनीय होते हैं, उसी प्रकार पीपल का वृक्ष भी अत्यन्त पूजनीय माना गया है।

पीपल को रोपने, रक्षा करने, छूने तथा पूजने से वह क्रमशः धन, पुत्र, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करता है।

जो मनुष्य अश्वत्थ वृक्ष के शरीर में कहीं कुछ चोट पहुँचाता है-उसकी डाली या टहनी काट लेता है, वह एक कल्पतक नरक भोगकर चाण्डाल आदिकी योनिमें जन्म ग्रहण करता है। और जो कोई पीपल को जड़ से काट देता है, उसका कभी नरकसे उद्धार नहीं होता यही नहीं, उसकी पहली कई पीढ़ियाँ भयंकर रौरव नरक में पड़ती हैं।

बेलके आठ, बरगद के सात और नीम के दस वृक्ष लगानेका जो फल होता है, पीपल का एक पेड़ लगानेसे भी वही फल होता है।