रुद्राक्षधारी ब्राह्मण जहाँ रहता है, वह देश पुण्यवान होता।रुद्राक्ष फल तीर्थों में महान् तीर्थ के समान है। ब्रह्म-ग्रंथि से युक्त मंगलमयी रुद्राक्ष की माला लेकर जो जप-दान-स्तोत्र, मन्त्र और देवताओं का पूजन तथा दूसरा कोई पुण्य कर्म करता है, वह सब अक्षय हो जाता है तथा उससे पापों का क्षय होता है।
श्रेष्ठ द्विजगण ! अब मैं माला का लक्षण बतलाता हूँ, सुनो। उसका लक्षण जानकर तुम लोग मोक्ष-मार्ग प्राप्त कर लोगे।
जिस रुद्राक्षमें योनिका चिह्न न हो, जिसमें कीड़ोंने छेद कर दिया हो, जिसका लिङ्गचिन्ह मिट गया हो तथा जिसमें दो बीज एक साथ सटे हुए हों, ऐसे रुद्राक्ष के दानेको माला में नहीं लेना चाहिये। जयमाला अपने हाथ से गुथी हुई और ढीली-ढाली हो, जिसके दाने एक-दूसरेसे सटे हुए हों अथवा शूद्र आदि नीच मनुष्य ने जिसे गूंथा हो-ऐसी माला अशुद्ध होती है उसका दूरसे ही परित्याग कर देना चाहिये।
जो सर्पके समान आकारवाली (एक ओरसे बड़ी और क्रमशः छोटी), नक्षत्रों की-सी शोभा धारण करनेवाली, सुमेरुसे युक्त तथा सटी हुई ग्रन्थि के कारण शुद्ध है, वही माला उत्तम मानी गयी है। विद्वान् पुरुषको वैसी ही मालापर जप करना चाहिये। उपर्युक्त लक्षणों से शुद्ध रुद्राक्ष की माला हाथ में लेकर मध्यमा अंगुली से लगे हुए दानों को क्रमशः अंगूठेसे सरकाते हुए जप करना चाहिये। मेरुके पास पहुँचने पर माला को हाथ से बार-बार घुमा लेना चाहिये -मेरुका उल्लंघन करना उचित नहीं है। वैदिक, पौराणिक तथा आगमोक्त के जितने भी मन्त्र हैं, सब रुद्राक्ष माला पर जप करनेसे अभीष्ट फलके उत्पादक और मोक्षदायक होते हैं। जो रुद्राक्ष माला चूते हुए जलको मस्तकपर धारण करता है, वह सब पापों से शुद्ध होकर अक्षय पुण्यका भागी होता है।
रुद्राक्ष माला का एक-एक बीज एक-एक देवता के समान है। जो मनुष्य अपने शरीरमें रुद्राक्ष धारण करता है, वह देवताओं में श्रेष्ठ होता है।
इस कार्यमें अत्यन्त श्रम होने के कारण रुद्र देवके शरीरसे पसीनेकी बूंदे टपकने लगीं। उन बूंदोसे तुरंत ही पृथ्वी पर रुद्राक्ष का महान् वृक्ष प्रकट हुआ। इसका फल अत्यंत गुप्त होनेके कारण साधारण जीव उसे नहीं जानते। तदनन्तर एक दिन कैलाश के शिखर पर विराजमान हुए देवाधिदेव भगवान श्री को प्रणाम करके कार्तिकेय ने कहा-'तात | मैं रुद्राक्ष का यथार्थ फल जानना चाहता हूँ। उसपर जप करने तथा उसका धारण, दर्शन अथवा स्पर्श करनेसे क्या फल मिलता है?'
। यदि कोई हिंसक पशु भी कंठ में रुद्राक्ष धारण करके मर जाय तो रुद्रस्वरूप हो जाता है, फिर मनुष्य आदिके लिये तो कहना ही क्या है। जो मनुष्य मस्तक और हृदय में रुद्राक्ष की माला धारण करके चलता है, उसे पग-पगपर अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।