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28 / May / 2020


रुद्राक्ष धारण करने का माहात्म्य

एक बार ब्राह्मणो ने व्यास जी से पूछा -द्विजश्रेष्ठ । इस मृत्युलोक में कौन ऐसा मनुष्य है, जो पुण्यात्मा में श्रेष्ठ, परम पवित्र, सबके लिये सुलभ, मनुष्यों के द्वारा पूजन करने योग्य तथा मुनियों और तपस्वियोंका भी आदरपात्र हो?

व्यासजी बोले-विप्रगण । रुद्राक्ष की माला धारण करने वाला पुरुष सब प्राणियों में श्रेष्ठ है।


उसके रुद्राक्ष का दर्शनमात्रसे लोगों की पाप-राशि विलीन हो जाती है। रुद्राक्ष के स्पर्श से मनुष्य स्वर्गका सुख भोगता है और उसे धारण करनेसे वह मोक्ष को प्राप्त होता है। जो मस्तक पर तथा हृदय और बांह में भी रुद्राक्ष धारण करता है, वह इस संसारमें साक्षात् भगवान् शंकर के समान है। 

रुद्राक्षधारी ब्राह्मण जहाँ रहता है, वह देश पुण्यवान होता।रुद्राक्ष फल तीर्थों में महान् तीर्थ के समान है। ब्रह्म-ग्रंथि से युक्त मंगलमयी रुद्राक्ष की माला लेकर जो जप-दान-स्तोत्र, मन्त्र और देवताओं का पूजन तथा दूसरा कोई पुण्य कर्म करता है, वह सब अक्षय हो जाता है तथा उससे पापों का क्षय होता है।

श्रेष्ठ द्विजगण ! अब मैं माला का लक्षण बतलाता हूँ, सुनो। उसका लक्षण जानकर तुम लोग मोक्ष-मार्ग प्राप्त कर लोगे।

जिस रुद्राक्षमें योनिका चिह्न न हो, जिसमें कीड़ोंने छेद कर दिया हो, जिसका लिङ्गचिन्ह मिट गया हो तथा जिसमें दो बीज एक साथ सटे हुए हों, ऐसे रुद्राक्ष के दानेको माला में नहीं लेना चाहिये। जयमाला अपने हाथ से गुथी हुई और ढीली-ढाली हो, जिसके दाने एक-दूसरेसे सटे हुए हों अथवा शूद्र आदि नीच मनुष्य ने जिसे गूंथा हो-ऐसी माला अशुद्ध होती है उसका दूरसे ही परित्याग कर देना चाहिये।

जो सर्पके समान आकारवाली (एक ओरसे बड़ी और क्रमशः छोटी), नक्षत्रों की-सी शोभा धारण करनेवाली, सुमेरुसे युक्त तथा सटी हुई ग्रन्थि के कारण शुद्ध है, वही माला उत्तम मानी गयी है। विद्वान् पुरुषको वैसी ही मालापर जप करना चाहिये। उपर्युक्त लक्षणों से शुद्ध रुद्राक्ष की माला हाथ में लेकर मध्यमा अंगुली से लगे हुए दानों को क्रमशः अंगूठेसे सरकाते हुए जप करना चाहिये। मेरुके पास पहुँचने पर माला को हाथ से बार-बार घुमा लेना चाहिये -मेरुका उल्लंघन करना उचित नहीं है। वैदिक, पौराणिक तथा आगमोक्त के जितने भी मन्त्र हैं, सब रुद्राक्ष माला पर जप करनेसे अभीष्ट फलके उत्पादक और मोक्षदायक होते हैं। जो रुद्राक्ष माला चूते हुए जलको मस्तकपर धारण करता है, वह सब पापों से शुद्ध होकर अक्षय पुण्यका भागी होता है।

रुद्राक्ष माला का एक-एक बीज एक-एक देवता के समान है। जो मनुष्य अपने शरीरमें रुद्राक्ष धारण करता है, वह देवताओं में श्रेष्ठ होता है।


-ब्राह्मणों पूछा-गुरुदेव! रुद्राक्ष की उत्पत्ति कहाँसे हुई है? तथा वह इतना पवित्र कैसे हुआ?

व्यास जी बोले-ब्राह्मण। पहले सत्ययुगमें एक त्रिपुर नामका दानव रहता था, यह देवताओं का वध करके अपने अन्तरिक्षचारी नगरमें छिप जाता था। ब्रह्मा के वरदान से प्रबल होकर वह सम्पूर्ण लोकों के विनाश की चेष्टा कर रहा था। एक समय देवताओं के निवेदन करने पर भगवान् शंकर ने यह भयंकर समाचार सुना। सुनते ही उन्होंने अपने आजगव नामक धनुषपर विकराल बाण चढ़ाया और उस दानवको दिव्य दृष्टि से देखकर मार डाला। दानव आकाशसे टूटकर गिरनेवाली बहुत बड़ी लूकाके समान इस पृथ्वी पर गिरा।

इस कार्यमें अत्यन्त श्रम होने के कारण रुद्र देवके शरीरसे पसीनेकी बूंदे टपकने लगीं। उन बूंदोसे तुरंत ही पृथ्वी पर रुद्राक्ष का महान् वृक्ष प्रकट हुआ। इसका फल अत्यंत गुप्त होनेके कारण साधारण जीव उसे नहीं जानते। तदनन्तर एक दिन कैलाश के शिखर पर विराजमान हुए देवाधिदेव भगवान श्री को प्रणाम करके कार्तिकेय ने कहा-'तात | मैं रुद्राक्ष का यथार्थ फल जानना चाहता हूँ। उसपर जप करने तथा उसका धारण, दर्शन अथवा स्पर्श करनेसे क्या फल मिलता है?'


भगवान शिव ने कहा-रुद्राक्ष को धारण करनेसे मनुष्य सम्पूर्ण पापों से छूट जाता है

। यदि कोई हिंसक पशु भी कंठ में रुद्राक्ष धारण करके मर जाय तो रुद्रस्वरूप हो जाता है, फिर मनुष्य आदिके लिये तो कहना ही क्या है। जो मनुष्य मस्तक और हृदय में रुद्राक्ष की माला धारण करके चलता है, उसे पग-पगपर अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।


रुद्राक्ष में एक से लेकर चौदहतक मुख होते हैं।


जो कितने भी मुख वाले रुद्राक्ष को धारण करता है, वह मेरे समान होता है। इसलिये पुत्र ! तुम पूरा प्रयत्न करके रुद्राक्ष धारण करो।


जो रुद्राक्ष धारण कर के इस भूतल पर प्राण त्याग करता है वह सब देवताओं से पूजित होकर मेरे रमणीय धामको जाता है। जो मृत्यु काल में मस्तक पर एक रुद्राक्ष की माला धारण करता है, वह शैव, वैष्णव, शाक्त, गणेशोपासक और सूर्योपासक सब कुछ है। जो इस प्रसंग पढ़ता-पढ़ाता, सुनता और सुनाता है, वह सब पापोंसे मुक्त होकर सुखपूर्वक मोक्ष-लाभ करता है।

जो लोग मांसाहार करते है, मद्य पान करते हैं, दुर्गंध युक्त भोजन ग्रहण करते है उनकों रुद्राक्ष धारण नहीं करना चाहिए । रुद्राक्ष को कभी भी काले धागे में नहीं धारण करना चाहिए ।

पद्म पुराण की कथा