दान किस पात्र को दिया जाता है ।
तपोनिष्ठ योगी और ज्ञाननिष्ठ यति-ये पूजा के पात्र हैं।
क्योंकि ये पापों के नाश में कारण होते है। जिसने चौबीस लाख गायत्री का जप कर लिया हो, वह ब्राह्मण भी पूजा का उत्तम पात्र है। वह सम्पूर्ण फलों और भोगोंको देने में समर्थ है। जो पतनसे प्राण करता अर्थात् नरकमें गिरने से बचाता है, उसके लिये इसी गुणके कारण शास्त्रमें 'पात्र' शब्द का प्रयोग होता है। वह दाताका पातकसे त्राण करनेके कारण 'पत्र * कहलाता है। गायत्री अपने गायक का पतनसे त्राण करती है; इसीलिये यह 'गायत्री' कहलाती है। जैसे इस लोकमें जो धनहीन है, वह दूसरेको धन नहीं देता-जो यहाँ धनवान है, वही दूसरेको धन दे सकता है, उसी तरह जो स्वयं शुद्ध और पवित्रात्मा है, वह दूसरे मनुष्य का प्राण का उद्धार कर सकता है। जो गायत्री का जप करके सिद्ध हो गया है, वही शुद्ध ब्राह्मण कहलाता है। इसलिये दान, जप, होम और पूजा सभी कर्मों के लिये वही शुद्ध पात्र है। ऐसा ब्राह्मण ही दान तथा रक्षा करनेकी पात्रता रखता है।
स्त्री हो या पुरुष-जो भी भूखा हो, वही अन्नदानका पात्र है। जिसको जिस वस्तुकी इच्छा हो, उसे वह वस्तु बिना माँगे ही दे दी जाय तो दाताको उस दान का पूरा पूरा फल प्राप्त होता है। जो सवाल या याचना करने के बाद दिया गया हो, वह दान आधा ही फल देने वाला बताया गया है। अपने सेवकको दिया हुआ दान एक चौथाई फल देनेवाला होता है। जो जातिमात्रसे ब्राह्मण है और दीनता पूर्ण वृत्ति से जीवन बिताता है, उसे दिया हुआ धन का दान दाताको इस भूतलपर दस वर्ष तक भोग प्रदान करनेवाला होता है। वही दान यदि वेदवेत्ता ब्राह्मण को दिया जाय तो वह स्वर्गलोकमें देवताओं के वर्ष से दस वर्ष तक दिव्य भोग देनेवाला होता है। शिल और उच्छ वृत्ति से लाया हुआ और गुरु दक्षिणा में प्राप्त हुआ अन्न-धन शुद्ध द्रव्य कहलाता है। उसका दान दाताको पूर्ण फल देनेवाला बताया गया है। क्षत्रियों को शौर्य से कमाया हुआ, वैश्यों का व्यापारसे आया हुआ और शूद्र का सेवावृत्तिसे प्राप्त किया हुआ धन भी उत्तम द्रव्य कहलाता है। धर्म की इच्छा रखनेवाली स्त्रियों को जो धन पिता एवं पति से मिला हुआ हो उनके लिए वह उत्तम द्रव्य है।
यह बारह वस्तुओ का चैत्र आदि बारह महिनों में क्रमशः दान करना चाहिये ।
गौ
| भूमि
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तिल
| सुवणँ
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घी
| वस्त्र
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धान्य
| गुड़
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चाँदी
| नमक
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कौड़ी
| कन्या
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इनमें गोदानसे कायिक, वाचिक और मानसिक पापोंका निवारण तथा कायिक आदि पुण्य की पुष्टि होती है। भूमि का दान इहलोक और परलोक में प्रतिष्ठा (आश्चय) की प्राप्ति करानेवाला है। तिल का दान बलवर्धक एवं मृत्यु का निवारक होता है। सुवर्णका दान जठराग्नि को बढ़ाने वाला तथा वीर्यदायक है। घीका दान पुष्टिकारक होता है। वस्त्र का दान आयु की वृद्धि करानेवाला है, ऐसा जानना चाहिए । धान्यका दान अन्न धनकी समृद्धिमें कारण होता है। गुड़का दान मधुर भोजन की प्राप्ति कराने वाला होता है। चाँदीके दानसे वीर्यकी वृद्धि होती है। लवण का दान षडरस भोजन की प्राप्ति कराता है। सब प्रकार का दान सारी समृद्धिकी सिद्धिके लिये होता है। कन्याका दान आजीवन भोग देनेवाला कहा गया है। वह लोक और परलोकमें भी सम्पूर्ण भोगों की प्राप्ति करानेवाला है।
जिसके पास सभी वस्तुओं का अभाव है, वह वाणी अथवा कर्म (शरीर) द्वारा यजन करें । मन्त्र, स्तोत्र और जप आदिको वाणी द्वारा किया गया यजन समझना चाहिये तथा तीर्थ यात्रा और व्रत आदिको विद्वान पुरुष शारीरिक यजन मानते हैं जिस किसी भी उपायसे बड़ा हो या बहुत, देवतार्पण-बुद्धि से जो कुछ भी दिया अथवा किया जाय, वह दान या सत्कर्म भोगोंकी प्राप्ति कराने में समर्थ होता है
तपस्या और दान-ये दो कर्म मनुष्यको सदा करने चाहिये तथा ऐसे गृहका दान करना चाहिये, जो अपने वर्ण (चमक-दमक या सफाई) और गुण (सुख-सुविधा) से सुशोभित हो । बुद्धिमान पुरुष देवताओं की तृप्रिके लिये जो कुछ देते हैं, वह अतिशय मात्रामें और सब प्रकारके भोग प्रदान करनेवाला होता है। उस दानसे विद्वान् पुरुष इहलोक और परलोक में उत्तम जन्म और सदा सुलभ होनेवाला भोग पाता है । ईश्वरर्पण बुद्धि से यज्ञ दान आदि कर्म करके मनुष्य मोक्ष फल का भागी होता है।