एकबार नारदजी के पूछने पर ब्रह्माजी ने कहा-बेटा! पहले भगवान के मुखसे महान् तेजोमय पुंज प्रकट हुआ। उस तेजसे सर्वप्रथम वेद की उत्पत्ति हुई । तत्पश्चात् क्रमशः अग्रि, गौ और ब्राह्मण-ये पृथक्-पृथक् उत्पन्न हुए। मैने सम्पूर्ण लोकों और भुवन की रक्षा के लिये पूर्वकालमें एक वेद से चारों वेदों का विस्तार किया। अग्नि और ब्राह्मण देवताओं के लिये हविष्य ग्रहण करते हैं और हविष्य (घी) गौओंसे उत्पन्न होता है , इसलिये ये चारों ही इस जगत्के जन्मदाता है। यदि ये चारों महत्तर पदार्थ विश्वमें नहीं होते तो यह सारा चराचर जगत् नष्ट हो जाता। ये ही सदा जगत्को धारण किये रहते हैं। जिससे स्वभावतः इसकी स्थिति बनी रहती है ब्राह्मण, देवता तथा असुरों को भी गौकी पूजा करनी चाहिये; क्योंकि गौ सब कार्योंमें उदार तथा वास्तवमें समस्त गुणोंकी खान है। वह साक्षात् सम्पूर्ण देवताओं का स्वरूप है सब प्राणियों पर उसकी दया बनी रहती है प्राचीन काल में सबके पोषणके लिये मैने गौ की सृष्टि की थी। गौओंकी प्रत्येक वस्तु पावन है और समस्त संसारको पवित्र कर देती है। गौका मूत्र, गोबर, दूध, दही और घी-इन पञ्चगव्योंका पान कर लेनेपर शरीरके भीतर पाप नहीं ठहरता। इसलिये धार्मिक पुरुष प्रतिदिन गौके दूध, दही और घी खाया करते है। गव्य पदार्थ सम्पूर्ण द्रव्योंमें श्रेष्ठ, शुभ और प्रिय है। जिसको गाय का दूध, दही और घी खानेका सौभाग्य नहीं प्राप्त होता, उसका शरीर मलके समान है। अन्न आदि पाँच रात्रितक, दूध सात रात्रितक, दही बीस रात्रितक और घी एक मासतक शरीरमें अपना प्रभाव रखता है। जो लगातार एक मासतक बिना गव्यका भोजन करता है, उस मनुष्य के भोजन में से प्रेतों को भाग मिलता है |
इसलिये प्रत्येक युगमें सब कार्य के लिये एकमात्र गौ ही प्रशस्त मानी गयी है गौ सदा और सब समय धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-ये चारों पुरुषार्थ प्रदान करनेवाली है। जो गौकी एक बार प्रदक्षिणा करके उसे प्रणाम करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर अक्षय स्वर्ग का सुख भोगता है। जैसे देवताओं के आचार्य बृहस्पतिजी वन्दनीय हैं, जिस प्रकार भगवान लक्ष्मीपति सबके पूज्य है, उसी प्रकार गौ भी वन्दनीय और पूजनीय है जो मनुष्य प्रातःकाल उठकर गौ और उसके घी का स्पर्श करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है। गौएँ दूध और घी प्रदान करनेवाली है। वे घृतकी उत्पत्ति-स्थान और घीकी उत्पत्तिमें कारण है। वे घी की नदियाँ है, उनमें धी की भवरें उठती हैं ऐसी गौएँ सदा मेरे घरपर मौजूद रहें।* घी मेरे सम्पूर्ण शरीर और मनमें स्थित हो। 'गौएँ सदा मेरे आगे रहे। वे ही मेरे पीछे रहें मेरे सब अङ्गोंको गौओ का स्पर्श प्राप्त हो। मैं गौओके बीच में निवास करु। इस मंत्र को प्रतिदिन संध्या और सबेरेके समय शुद्ध भावसे आचमन करके जपना चाहिए। ऐसा करनेसे उसके सब पापों का क्षय हो जाता है तथा वह स्वर्गलोक में पूजित होता है। जैसे गौ आदरणीय है वैसे ब्राह्मण; जैसे ब्राह्मण है वैसे भगवान श्री विष्णु। जैसे भगवान श्री विष्णु है वैसी ही श्रीगङ्गाजी भी है ये सभी धर्म के साक्षात् स्वरूप माने गये है। गौएँ मनुष्यों की बन्धु हैं और मनुष्य गौओंके बन्धु हैं जिस घरमें गौ नहीं है, वह बन्धुरहित गृह है छहों अंगों, पदों और क्रम सहित सम्पूर्ण वेद गौओंके मुखमें निवास करते हैं। उनके सींगों में भगवान श्री शंकर और श्री विष्णु सदा विराजमान रहते हैं। गौओंके उदरमें कार्तिकेय, मस्तकमें ब्रह्मा, ललाट में महादेव जी, सींगों के अग्रभाग में इन्द्र, दोनों कानों में अश्विनी कुमार, नेत्रों में चन्द्रमा और सूर्य, दाँतों में गरुड़, जिह्नामें सरस्वती देवी, अपान (गुदा) में सम्पूर्ण तीर्थ, मूत्रस्थानमें गङ्गाजी, रोमकूपोंमें ऋषि, मुख और पृष्ठभागमें यमराज, दक्षिण पूर्व में वरुण और कुबेर, वाम पार्श्वमें तेजस्वी और महाबली यक्ष, मुखके भीतर गन्धर्व, नासिक के अग्रभाग में सर्प, खुरों के पिछले भागमें अप्सराएँ, गोबरमें लक्ष्मी, गोमूत्र में पार्वती, चरणोंके अग्रभागमें आकाशचारी देवता, रंभानेकी आवाजमें प्रजापति और थनोमें भरे हुए चारों समुद्र निवास करते हैं। जो प्रतिदिन स्नान करके गंगा स्पर्श करता है, वह मनुष्य सब प्रकारके स्थूल पापों से भी मुक्त हो जाता है। जो गौओं के खुर से उड़ी हुई धूलको सिरपर धारण करता है, वह मानो तीर्थ जल में स्नान कर लेता है और सब पापों से छुटकारा पा जाता है।