भगवान विष्णु द्वारा गंधर्व कन्या को वैद्यक संहिता का वर्णन - भाग 1
सौति कहते है- शौनक, गंधर्वराज के पुत्र उपबहॅण ने वशिष्ठ जी के द्वारा परम दुर्लभ हरि मंत्र की दीक्षा पाकर दुष्कर तपस्या की । गंधर्व राज चित्ररथ की पचास कन्या उसकी पत्नियाँ थी। उस में उसकी पटरानी मालावती पतिव्रता नारी और सती थी। एकबार उपबहॅण ब्रम्हा जी के स्थान पे गये ।वहां श्री हरि का यशोगान करने लगे ,वहीं रम्भा को नृत्य करते देख उपबहॅण के मनमें वासना जाग उठी और उनका वीर्य स्खलित हो गया ।इससे उनकी बडी हसी हुई और ब्रम्हा जीने उन्हें शाप देते हुए कहा -तुम गंधर्व शरीर को त्याग कर शूद्रयोनि को प्राप्त हो जाओ। ब्रम्हा जी के शाप से उपबहॅण ने तत्काल अपने शरीर को त्याग दिया ।
उपबहॅण की पचास पत्नियोंमें जो उनकी परम प्रेयसी तथा प्रधान पटरानी थी, वह सती साध्वी मालावती अपने प्रियतमको छातीसे लगाकर अत्यन्त उच्च-स्वर से रोदन करने लगी। भाँति-भाँतिसे करुण विलाप करके मालावती बोली-कमलोदभव ब्रह्माजी का यह कथन है कि मुझ सती-साध्वी, कुलीन नारियोंके लिये उसके पतिके सिवा दूसरा कोई विशिष्ट बान्धव नहीं दिखायी देता। अतः हे दिशाओं के स्वामी दिक्पालो! हे धर्म! हे प्रजापति! हे गिरीश शंकर! तथा हे कमलाकान्त नारायण! आप लोग मुझे पति-दान दीजिये। ऐसा कहकर विरहसे आतुर हुई चित्ररथकी कन्या मालावती वहीं उस दुर्गम गहन वन में मूर्छित हो गयी। प्रियतमको अपने वक्ष:स्थल से लगाकर पूरे एक दिन और एक रात वह अचेत अवस्थामें वहाँ पड़ी रही। उस समय सम्पूर्ण देवताओं ने उसकी रक्षा की। प्रात:काल फिर होशमें आनेपर वह पुनः जोर-जोरसे विलाप करने लगी।
अन्तमें सहसा कुपित हो नारायण, ब्रह्मा, महादेव तथा धर्म आदि समस्त देवताओं को सम्बोधित करके उन्हें शाप देनेको उद्यत हो गयी। तो ब्रह्मा आदि देवताओं क्षीरसागर के तट पर जाकर भगवान विष्णु की शरण ली और मालावतीके भीषण शापसे बचानेकी उनसे प्रार्थना की। देवताओं की प्रार्थना कर चुकनेपर आकाशवाणी हुई-'देवताओं! अब तुम लोग जाओ। यज्ञ के मूल हैं भगवान विष्णु, वे ही ब्राह्मण का रूप धारण करके मालावती को शान्त करने तथा तुमलोगोंको शापके संकटसे बचानेके लिये जायेंगे।
आकाशवाणी का यह कथन सुनकर सब देवताओं का हृदय प्रसन्नता से खिल उठा। वे सब-के-सब उत्कण्ठित हो कौशिकीके तटपर मालावती के स्थान में गये। वहाँ पहुँच कर देवताओं ने उस सती मालावती देवी को देखा।
तत्पश्चात भगवान विष्णु ब्राह्मण बालक का वेश धारण कर वहां उपस्थित हुए ।
ब्राह्मण ने कहा-यहाँ ब्रह्मा और शिव आदि सम्पूर्ण देवता किसलिये पधारे हैं? जगत्की सृष्टि करनेवाले साक्षात् विधाता यहाँ किस कार्यसे आये हैं? समस्त ब्रह्माण्ड का संहार करनेवाले स्वयं सर्वव्यापी शम्भु भी यहाँ विराज रहे हैं। इसका क्या कारण है? तीनों लोकोंके समस्त कर्मों का साक्षी धर्म भी यहाँ उपस्थित हैं, यह महान् आश्चर्य है। सूर्य, चन्द्रमा, अग्नि, काल, मृत्यु कन्या तथा यम आदिका समागम हो यहाँ किसलिये सम्भव हुआ है? हे मालावती! तुम्हारी गोदमें अत्यन्त सूखा हुआ शव कौन है? जीती जागती स्त्री के पास मरा हुआ पुरुष क्यों है?
उस सभामें देवताओं तथा मालावती से ऐसा प्रश्न करके वे ब्राह्मण देवता जब चुप हो गये, तब मालावती उन विद्वान् ब्राह्मण को प्रणाम करके यों बोली। मालावतीने कहा-मैं ब्राह्मण रूप धारी भगवान विष्णु को प्रसन्नता पूर्वक प्रणाम करती हूँ, जिनके दिये हुए जल और पुष्पमात्रसे सम्पूर्ण देवता तथा श्रीहरि भी संतुष्ट होते हैं। प्रभो! मैं शोकसे आतुर हूँ। आप मेरे इस निवेदनपर ध्यान दीजिये; क्योंकि योग्य और अयोग्यपर भी कृपा करनेवाले संत महात्माओंका अनुग्रह सदा सबपर समानरूपसे प्रकट होता है। विप्रवर! मैं उपबहॅण की पत्नी तथा चित्ररथकी कन्या हूँ। मुझे सब लोग मालावती कहते हैं। मैंने लक्ष दिव्य वर्ष तक अपने इन श्याम के साथ प्रत्येक सुरम्य तथा मनोहर स्थानपर स्वच्छन्द क्रीडा की है। द्विजेन्द्र! आप विद्वान् हैं। साध्वी युवतियोंका अपने प्रियतमके प्रति जितना स्नेह होता है, वह सब आपको शास्त्र के अनुसार विदित है। मेरे पति ने अकस्मात ब्रह्माजी का शाप प्राप्त होनेसे अपने प्राणोंको त्याग दिया है। अतः मैं देवताओं से यह उद्देश्य रखकर विलाप करती हूँ कि मेरे पति जीवित हो जाएं।
ब्राह्मण बोले-जो संपूर्ण तत्वों का ज्ञाता, समस्त कारणोंके भी कारण तथा वेद-वेदाङ्गोंके बीज के भी बीज हैं, उन परमेश्वर श्रीकृष्ण की मैं वन्दना करता हूँ। समस्त मङ्गलोंके भी मङ्गलकारी बीजस्वरूप उन सनातन परमेश्वरने मङ्गलके आधारभूत चार वेदों को प्रकट किया उनके नाम हैं- ऋक्, यजु, साम और अथर्व। उन वेदोंको देखकर और उनके अर्थ के विचार करके प्रजापति ने आयुर्वेद का संकलन किया इस प्रकार पञ्चम वेद का निर्माण करके भगवान ने उसे सूर्यदेव के हाथ में दे दिया। उससे सूर्यदेव ने एक स्वतन्त्र संहिता बनायी। फिर उन्होंने अपने शिष्योंको वह अपनी 'आयुर्वेद संहिता' दी और पढ़ाई। तत्पश्चात् उन शिष्योंने भी अनेक संहिता का निर्माण किया। पतिव्रते ! उन विद्वानोंके नाम और उनके रचे हुए तंत्रों के नाम, जो रोग नाशक बीज रूप है, मुझसे सुनो। धन्वन्तरि, काशिराज, दिवोदास, दोनों अश्विनी कुमार, नकुल, सहदेव, सूर्यपुत्र यम, च्यवन, जनक, बुध, जाबाल, जाजलि, पैल, अर्थ और अगस्त्य-ये सोलह विद्वान् वेद-वेदाङ्गोंके ज्ञाता तथा रोगों के नाशक (वैद्य) हैं। पतिव्रते! सबसे पहले भगवान धन्वन्तरि ने 'चिकित्सा-तत्त्व विज्ञान' नामक एक मनोहर तंत्र का निर्माण किया। फिर दिवोदासने चिकित्सा-दर्पण' नामक ग्रन्थ बनाया ।
काशिराजने "दिव्य चिकित्सा-कौमुदी' का प्रणयन किया। दोनों अश्विनीकुमारों ने 'चिकित्सा-सार तंत्र' की रचना की, जो भ्रमका निवारण करनेवाला है। नकुल ने 'वैद्यक सर्वस्व' नामक तन्त्र बनाया। सहदेव ने 'व्याधिसिन्धुविमर्दन' नामक ग्रन्थ तैयार किया। यमराजने 'ज्ञानार्णव' नामक महातन्त्रकी रचना की। भगवान् च्यवन मुनिने 'जीवदा, नामक ग्रन्थ बनाया। योगी जनक 'वैद्य संदेहभञ्जन' नामक ग्रन्थ लिखा । चन्द्रकुमार बुधने 'सर्वसार, जाबालने 'तन्त्रसार' और जाजलि मुनिने 'वेदाङ्ग- सार' नामक तंत्र की रचना की। पेलने 'निदान-तन्त्र', करथने उत्तम 'सर्वधर-तन्त्र' तथा अगस्त्यजीने द्वैध-निर्णय' तंत्र का निर्माण किया। ये सोलह तन्त्र चिकित्सा-शास्त्र के बीज हैं, रोग-नाश के कारण हैं तथा शरीरमें बलका आधान करनेवाले हैं।
ब्रह्मवैवर्त पुराण की कथा
बाकी अगले भाग में......