पच्जदेवी रुपा प्रकृति का तथा उनके अंश कला का वर्णन - भाग 2
नारद! प्रकृति देवी के एक प्रधान अंशको 'देवसेना' कहते हैं। मातृकाओंमें ये परम श्रेष्ठ मानी जाती हैं। इन्हें लोग भगवती 'षष्ठी' के नामसे जानते हैं प्रत्येक लोक में शिशु का पालन एवं संरक्षण करना इनका प्रधान कार्य है ये तपस्विनी, विष्णु भक्त कथा कार्तिकेय जी की पत्नी हैं। ये साध्वी भगवती प्रकृति का छठा अंश हैं अतएव इन्हें षष्ठी' देवी कहा जाता है। संतानोत्पत्तिके अवसरपर अभ्युदयके लिये इन षष्ठी योगिनी की पूजा होती है। अखिल जगत्में बारहों महीने लोग इनकी निरन्तर पूजा करते हैं। पुत्र उत्पत्र होनेपर छठे दिन सूतिकागृहमें इनकी पूजा हुआ करती है-यह प्राचीन नियम है। कल्याण चाहनेवाले कुछ व्यक्ति इक्कीसवें दिन इनकी पूजा करते हैं। इनकी मातृका संज्ञा है। ये दयास्वरूपिणी हैं। निरन्तर रक्षा करने में तत्पर रहती हैं जल, थल, आकाश, गृह-जहाँ कहीं भी बच्चोंको सुरक्षित रखना इनका प्रधान उद्देश्य है।
प्रकृति देवी का एक प्रधान अंश मंगलचण्डी' के नामसे विख्यात है। ये मङ्गलचण्डी प्रकृतिदेवीके मुखसे प्रकट हुई हैं इनकी कृपासे समस्त मङ्गल सुलभ हो जाते हैं। सृष्टिके समय इनका विग्रह मङ्गलमय रहता है। बिहार के अवसर पर ये क्रोधमयी बन जाती हैं। इसीलिये इन देवीको पण्डितजन 'मङ्गल चण्डी' कहते हैं प्रत्येक मङ्गलवारको विश्वभरमें इनकी पूजा होती है इनके अनुग्रहसे साधक पुरुष पुत्र, पौत्र, धन, सम्पत्ति, यश और कल्याण प्राप्त कर लेते हैं। प्रसन्न होनेपर सम्पूर्ण स्त्रियोंके समस्त मनोरथ पूर्ण कर देना इनका स्वभाव ही है। ये भगवती महेश्वरी कुपित होने पर क्षणमात्रमें विश्वको नष्ट कर सकती हैं।
देवी 'काली' को प्रकृति देवी का प्रधान अंश मानते हैं। इन देवीके नेत्र ऐसे हैं. मानो कमल हो। संग्राम में जो भगवती दुर्गा के सामने प्रबल राक्षस-बन्धु शुम्भ और निशुम्भ डटे थे, उस समय ये काली भगवती दुर्गा के ललाट से प्रकट हुई थीं। उन्हें दुर्गा का आधा अंश माना जाता है गुण और तेजमें ये दुर्गा के समान ही हैं। इनका परम पुष्ट विग्रह करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाशमान है। सम्पूर्ण शक्तियोंमें ये प्रमुख हैं। इनसे बढ़कर बलवान् कोई है ही नहीं। ये परम योग स्वरूपिणी देवी सम्पूर्ण सिद्धि प्रदान करती हैं। श्रीकृष्ण के प्रति इनमें अटूट श्रद्धा है तेज, पराक्रम और गुणमें ये श्रीकृष्ण के समान ही हैं इनका सारा समय भगवान् श्रीकृष्ण के चिंतन में ही व्यतीत होता है। इन सनातन देवीके शरीरका रंग भी कृष्ण ही है ये चाहें तो एक श्वासमें समस्त ब्रह्माण्डको नष्ट कर सकती हैं। अपने मनोरंजन के लिये अथवा जगत्को शिक्षा देनेके विचार से ही ये संग्राम में दैत्यों के साथ युद्ध करती हैं। सुपूजित होनेपर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-सब कुछ देनेमें ये पूर्ण समर्थ हैं ब्रह्मादि देवता, मुनिगण, मनु प्रभृति और मानव समाज सब-के सब इनकी उपासना करते हैं।
भगवती 'वसुन्धरा' भी प्रकृति देवी के प्रधान अंशसे प्रकट हैं। अखिल जगत् उन्हीं पर ठहरा है। ये सर्व-शस्य-प्रसूतिका (सम्पूर्ण खेतीको उत्पन्न करनेवाली) कही जाती हैं इन्हें लोग 'रत्नाकर' और 'रत्नगर्भा' भी कहते हैं सम्पूर्ण रत्नों की खान इन्होंके अंदर विराजमान है। राजा और प्रजा-सभी लोग इनकी पूजा एवं स्तुति करते हैं। सबको जीविका प्रदान करनेके लिये हो इन्होंने यह रूप धारण कर रखा है। ये सम्पूर्ण सम्पत्तिका विधान करती है। ये न रहें तो सारा चराचर जगत् कहीं भी ठहर नहीं सकता। मुनिवर! प्रकृतिदेवीकी जो-जो कथाएं हैं, उन्हें सुनो और ये जिन-जिनकी पत्नियाँ हैं, वह सब भी मैं तुम्हें बताता हूँ।
देवी 'स्वाहा' अग्निकी पत्नी हैं। सम्पूर्ण जगत्में इनकी पूजा होती है । इनके बिना देवता अर्पित की हुई हवि पानेमें असमर्थ हैं। यज्ञ की पत्नी को 'दक्षिणा' कहते हैं। इनका सर्वत्र सम्मान होता है। इनके न रहनेपर विश्वभरके सम्पूर्ण कर्म निष्फल समझे जाते हैं। 'स्वधा' पितरोंकी पत्नी हैं। मुनि, मनु और मानव-सभी इनकी पूजा करते हैं इनका उच्चारण न करके पितरोंको वस्तु अर्पण की जय तो वह निष्फल हो जाती है। वायु की पत्नी का नाम देवी 'स्वस्ति' है। प्रत्येक विश्वमें इनका सत्कार होता है। इनके बिना आदान-प्रदान सभी निष्फल हो जाते हैं। 'पुष्टि' गणेशकी पत्नी हैं। धरातलपर सभी इनको पूजते हैं। इनके बिना पुरुष और स्त्री-सभी क्षीण शक्तिहीन हो जाते हैं। अनंत की पत्नी का नाम 'तुष्टि' है सब लोग इनकी पूजा एवं वंदना करते हैं। इनके बिना सम्पूर्ण संसार सम्यक् प्रकारसे कभी संतुष्ट हो ही नहीं सकता। ईशान की पत्नी का नाम 'सम्पत्ति' है। देवता और मनुष्य-सभी इनका सम्मान करते हैं। इनके न रहनेपर विश्वभरकी जनता दरिद्र कहलाती है। 'धृति' कपिल मुनि की पत्नी हैं। सब लोग सर्वत्र इनका स्वागत करते हैं। ये न रहें तो जगत्में सम्पूर्ण प्राणी धैर्य से हाथ धो बैठे।
'क्षमा' यम की पत्नी हैं; ये साध्वी और सुशीला हैं, सभी इनका सम्मान करते हैं; ये न हों तो सब लोग रुष्ट एवं उन्मत्त हो जायँ। सती- साध्वी 'रति' कामदेव की पत्नी हैं, ये क्रीड़ा की अधिष्ठात्री देवी हैं। ये न रहें तो जगत के सब प्राणी केली- कौतुकसे शून्य हो जाये। सती 'मुक्ति' को सत्यकी भार्या कहा गया है सबसे आदर पानेवाली ये देवी परम लोकप्रिय हैं। इनके बिना जगत् सर्वथा बन्धुता-शून्य हो जाता है। परम साध्वी 'दया' मोहकी पत्नी हैं। ये पूज्य एवं जगत्प्रिय हैं। इनके अभावमें सम्पूर्ण प्राणी सर्वत्र निष्ठुर माने जाते हैं। पुण्य की सहधर्मिणी प्रतिष्ठा' हैं। ये पुण्यरूपा देवी सदा सुपूजित होती हैं। मुने! इनके बिना सारा संसार जीते हुए ही मृतकके समान समझा जाता है। सुकर्मकी पत्नी 'कीर्ति' हैं, जो धन्या और माननीय हैं सबके द्वारा इनका सम्मान होता है। इनके अभावमें अखिल जगत् यशोहीन होकर मृतकके समान हो जाता है। 'क्रिया उद्योग की पत्नी हैं। इन आदरणीया देवीसे सब लोग सहमत हैं।
नारद!इनके बिना सारा संसार उच्छिन्न-सा हो जाता है। अधर्म की पत्नी को 'मिथ्या' कहते हैं। सभी धूर्त इनका सत्कार करते हैं। सतयुग में ये बिलकुल अदृश्य थी। त्रेता युग में सूक्ष्म रूप धारण करके प्रकट हो गयीं। द्वापर में अपने आधे शरीरसे शोभा पाने लगी और कलयुग में तो इन 'मिथ्या' देवी का शरीर पूरा हृष्ट-पुष्ट हो गया है। सब जगह इनकी पहुँच होनेके कारण ये बड़ी प्रगल्भता (धृष्टता)-के साथ सर्वत्र अपना आधिपत्य जमाये रहती हैं। इनके भाईका नाम 'कपट' है। उसके साथ ये प्रत्येक घरमें चक्कर लगाती हैं। |'शान्ति' और 'लज्जा'-ये सुशीलकी दो आदरणीया पत्नियाँ हैं। नारद! इनके न रहनेपर सारा जगत् उन्मत्तकी भाँति जीवन व्यतीत करने लगता है। 1ज्ञान की तीन पत्नियां हैं-'बुद्धि', 'मेधा' और 'स्मृति' । ये साथ छोड़ दें तो समस्त संसार मूर्ख और मरेके समान हो जाय। धर्मकी सहधर्मिणीका नाम 'मूर्ति' है। कमनीय कान्तिवाली ये देवी सबके मनको मुग्ध किये रहती हैं। इनका सहयोग न मिले तो परमात्मा निराकार ही रह जाये और सम्पूर्ण विश्व भी निराधार हो जाय। इनके स्वरूपको अपनाकर ही साध्वी लक्ष्मी सर्वत्र शोभा पाती हैं। 'श्री और 'मूर्ति'-दोनों इनके स्वरूप हैं ये परम मान्य, धन्य एवं सुपूज्य हैं।
'कालाग्नि' रुद्रकी पत्नी का नाम है। इनको 'योग निद्रा' भी कहते हैं। रात्रिमें इनका सहयोग पाकर सम्पूर्ण प्राणी आच्छन्न अर्थात् नींद व्याप्त हो जाते हैं। काल की तीन भार्याएँ हैं- 'संध्या', 'रात्रि' और 'दिन'। ये न रहें तो ब्रह्मा भी काल-संख्याका परिगणन नहीं कर सकते। 'क्षुधा' और 'पिपासा'-ये दो लोभकी भार्याएँ हैं। ये परम धन्य, मान्य और आदर के पात्र हैं। जिन्होंने सम्पूर्ण जगत पर अपना प्रभाव जमा रखा है। इन्हींके कारण जगत् क्षोभयुक्त तथा चिन्तातुर होता है। 'प्रभा' और 'दाहिका'-ये तेजकी दो स्त्रियाँ हैं। इनके अभाव में जगत स्रष्टा ब्रह्मा अपना कार्य-सम्पादन करनेमें असमर्थ हैं। ज्वरकी प्यारी भार्या हैं 'मृत्यु'। जरा और व्याधि उसके पुत्रों एवं पुत्री है । मृत्यु कालकी पुत्रि हैं। इनकी सत्ता न रहे तो ब्रह्मा के बनाये हुए जगत्की व्यवस्था ही बिगड़ जाय। निद्रा की कन्या का नाम 'तन्द्रा' है। यह और 'प्रीति'-ये दो सुखकी प्रियाएँ हैं। ब्रह्मपुत्र नारद! विधिके विधानमें बना रहनेवाला यह सारा जगत् इनसे व्याप्त है। 'श्रद्धा' और 'भक्ति'-ये वैराग्य की दो परम आदरणीय पत्नियाँ हैं। मुने! इनके कृपा प्रसादसे अखिल जगत् सदा जीवन्मुक्त हो सकता है। देवमाता ' अदिति', गौओंको उत्पत्र करनेवाली 'सुरभि', दैत्यों की माता 'दिति', 'कद्रू', 'विनता और 'दनु'-ये सभी देवियाँ सृष्टिका कार्य संभालती हैं। इन्हें भगवती प्रकृति की 'कला' कहा जाता है। अन्य भी बहुत-सी कलाएँ हैं। कुछ कलाओंका परिचय कराता हूँ, सुनो। चन्द्रमा की पत्नी 'रोहिणी' और सूर्यकी 'संज्ञा' हैं। मनु की भार्या का नाम 'शतरूपा' है। 'शची' इन्द्र की धर्मपत्नी हैं। बृहस्पति की सहधर्मिणी 'तारा' हैं। 'अरुन्धती' वशिष्ठ मुनि की धर्मपत्नी हैं। 'अहल्या' गौतमकी, 'अनसूया' अत्रिकी, 'देवहूति' कर्दम मुनि की और 'प्रसूति' दक्ष की पत्नि हैं। पितरोंकी मानसी कन्या 'मेनका' पार्वती की जननी हैं। लोपामुद्रा', 'आहूति', कुबेरकी पत्नी, वरुणकी पत्नी, यमकी पत्नी, 'बलिकी भार्या विन्ध्यावली। जो-जो ग्राम देवियाँ हैं, वे सभी उनकी कलाएँ हैं |
नारद! इस प्रकार प्रकृति के सम्पूर्ण रूपका वर्णन कर दिया। वे सभी देवियाँ पृथ्वी के पुण्यक्षेत्र भारत में पूजित हुई हैं। दुर्गा दुर्गतिका नाश करती हैं। राजा सुरथ ने सर्वप्रथम इनकी उपासना की है। इसके पश्चात् रावण वध करने की इच्छा से भगवान श्रीराम ने देवी की पूजा की है। तत्पश्चात् भगवती जगदम्बा तीनों लोकों में सुपूजित हो गयी। पहले दैत्यों और दानवोंका वध करनेके लिये ये दक्षके यहाँ प्रकट हुई थीं । परंतु कुछ कालके पश्चात् पिताके यज्ञमें स्वामीका अपमान देखकर इन्होंने अपना शरीर त्याग दिया। फिर ये हिमालय की पत्नी के उदर से उत्पन्न हुई। उस समय इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त किया। गणेश और स्कन्द-इनके दो पुत्र हुए गणेश को स्वयं श्रीकृष्ण माना जाता है। स्कन्द विष्णु कलासे उत्पन्न हुए हैं
नारद! इसके बाद राजा मङ्गलने सर्वप्रथम लक्ष्मी की आराधना की है। तत्पश्चात् तीनों लोकों के देवता, मुनि और मानव इनकी पूजा करने लगे राजा अश्वपति ने सबसे पहले सावित्रीकी उपासना की; फिर प्रधान देवता और श्रेष्ठ मुनि भी इनके उपासक बन गये। सबसे पहले ब्रह्मा ने सरस्वती का सम्मान किया। इसके बाद ये देवी तीनों लोकों में देवताओं और मुनियोंकी पूजनीया हो गयी। सर्वप्रथम गोलोकमें रासमण्डलके भीतरं परमात्मा श्री कृष्ण भगवान ने राधा की पूजा की है। गोपों, गोपियों, गोपकुमारों और कुमारियोंके साथ सुशोभित होकर श्रीकृष्ण ने राधा का पूजन किया था। उस समय कार्तिक पूर्णिमा की चाँदनी रात थी। गौओंका समुदाय भी इस उत्सवमें सम्मिलित था। फिर भगवान की आज्ञा पाकर ब्रह्मा प्रभृति देवता तथा मुनिगण बड़े हर्षके साथ भक्तिपूर्वक पुष्प एवं धूप आदि सामग्रियोंसे निरन्तर इनकी पूजा-वन्दना करने लगे। इस भूमण्डलमें पहले राधा देवी की पूजा राजा सुयज्ञ ने की है। ये नरेश पुण्यक्षेत्र भारतवर्ष में थे। भगवान शंकर के उपदेश के अनुसार इन्होंने देवीकी उपासना की थी। फिर भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा पाकर त्रिलोकीमें मुनिगण पुष्प एवं धूप आदि उपचारोंसे भक्ति प्रदर्शित करते हुए इनकी पूजा में सदा तत्पर रहने लगे। जो-जो कलाएँ प्रकट हुई हैं, उन सबकी भारतवर्ष में पूजा होती है। मुने! तभीसे प्रत्येक ग्राम और नगरमें ग्रामदेवियोंकी पूजा होती है। नारद ! इस प्रकार आगमोंके अनुसार भगवती प्रकृति का सम्पूर्ण शुभ चरित्र मैंने तुम्हें सुना दिया।