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07 / Jul / 2020


विविध कामनाओंकी सिद्धिके लिये प्रयुक्त होनेवाले ऋग्वेदीय मन्त्र का महत्व

अग्निदेव कहते हैं-वसिष्ठ! अब मैं महर्षि पुष्कर के द्वारा परशुराम जी के प्रति वर्णित ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का विधान कहता हूँ, जिसके अनुसार मन्त्र के जप और होमसे भोग एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है।

पुष्कर बोले-परशुराम! अब मैं प्रत्येक वेद के अनुसार तुम्हारे लिये कर्तव्य कर्मों का वर्णन करता हूँ। पहले तुम भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले 'ऋग्विधान'को सुनो। गायत्री-मन्त्र का विशेषतः प्राणायाम पूर्वक जल में खड़े होकर तथा होमके समय जप करनेवाले पुरुषकी समस्त मनोवाञ्छित कामनाओंको गायत्री देवी पूर्ण कर देती हैं। ब्रह्मन्! जो दिनभर उपवास करके केवल रात्रिमें भोजन करता और उसी दिन अनेक बार स्नान करके गायत्री मन्त्र का दस सहस्र जप करता है, उसका वह जप समस्त पापोंका नाश करनेवाला है। जो गायत्री का एक लाख जप करके हवन करता है, वह मोक्ष का अधिकारी होता है। प्रणव' परब्रह्म है। उसका जप सभी पापोंका हनन करनेवाला है। नाभि पर्यन्त जल में स्थित होकर ॐकार का सौ बार जप करके अभिमन्त्रित किये गये जलको जो पीता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो जाता है। गायत्री के प्रथम अक्षर प्रणव की तीन मात्राएँ अकार, उकार और मकार-ये ही 'ऋक्', ' साम' और 'यजुष'-तीन वेद हैं, ये ही ब्रह्मा, विष्णु और शिव-तीनों देवता हैं तथा ये ही गार्हपत्य, आहवनीय और दक्षिणाग्नि-दोनों अग्रियाँ हैं। गायत्री की जो सात महा व्याहृतियाँ हैं, वे ही सातों लोक हैं। इनके उच्चारणपूर्वक गायत्री-मन्त्रसे किया हुआ होम समस्त पापोंका नाश करनेवाला होता है। सम्पूर्ण गायत्री-मन्त्र तथा महाव्याहृति मेँ-ये सब जप करनेयोग्य एवं उत्कृष्ट मन्त्र हैं।

परशुरामजी! अघमर्षण-मन्त्र ॐ अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् होतारं रत्नधातमम् ॥ यह ऋग्वेद का प्रथम मंत्र अग्नि देवता का सूक्त है। अर्थात् 'अग्नि' इसके देवता हैं जो मस्तकपर अग्नि के पात्र धारण करके एक वर्षतक इस सूक्तका जप करता है, तीनों काल स्नान करके हवन करता है, गृहस्थोंके घरमें चूल्हेकी आग बुझ जानेपर उनके यहाँसे भिक्षान्न लाकर उससे जीवननिर्वाह करता है तथा उक्त प्रथम सूक्त के अनन्तर जो वायु आदि देवताओं के सात सूक्त



1. अग्निः पूर्वेभिर्र्षिभिरीड्यो नूतनैरुत । स देवा एह वक्षति।।
2. 'अग्निना रयिमभवत् पोषमेव दिवेदिवे। यशसं वीरवत्तमम् ॥'
3. 'अग्ने यं यज्ञमध्वरं विश्वतः परिभूरसि। स इद्देवेषु गच्छति ॥'
4. 'अग्निहोत कविक्रतुः सत्यश्चित्रश्रवस्तमः । देवो देवेभिरा गमत् ॥ '
5. 'यदङ्ग दाशुषे त्वमग्ने भद्रं करिष्यसि। तवेत्तत् सत्यमङ्गिरः॥'
6. 'उप त्वाग्ने दिवेदिवे दोषावस्तर्धिया वयम् । नमो भरन्त एमसि ।।'
7. 'राजन्तमध्वराणां गोपामृतस्य दीदिविम। वर्धमानं स्वे दमे ॥'

 उनका भी जो प्रतिदिन शुद्धचित्त होकर जप करता है, वह मनोवांछित कामना को प्राप्त कर लेता है।




1. ' सदसस्पति मद्भुतं प्रियमिन्द्रस्य काम्यम्। सनि मेधामयासिषम् ॥'
2.  'यस्मादृते न सिध्यति यज्ञो विपश्चितश्चन। स धीनां योगमिन्वति ।।'
 3. 'आदृघ्नोति हविष्कृति प्राञ्चं कृणोत्यध्वरम्। होत्रा देवेषु गच्छति ॥' 

जो मेधा (धारण-शक्ति)-को प्राप्त करना चाहे, वह प्रतिदिन इन  तीन ऋचाओंका जप करे 




1. 'अम्बयो यन्यध्वभिर्जामयो अध्वरीयताम्। पूज्वतीर्मधुना पयः ॥'
2.  'अमूर्या उप सूर्ये याभिर्वा सूर्य: सह। ता नो हिन्वन्त्वध्वरम्॥'
3.  अपो देवी रुप ह्यये यत्र गावः पिबन्ति नः । सिन्युभ्यः कत्वॅ हविः ॥'
4. अप्वश्न्तरमृतमप्सु भेषजमपामुत प्रशस्तये ।देवा भवत वाजिनः।।'
5. अप्सु मे सोमो अबवीदन्तर्विश्वानि भेषजा। अग्नि च विश्वशम्भुवमापश्च विश्वं भेषज ॥' 
6. आपः पृणीत भेषजं वरूथं तन्वे रु मम। ज्योक् च सूर्य दृशे।।'
7. इदमापः प्र वहत यत्किं च दुरितं मयि। यद्वाहमभिद्रोह यद्वा शेप उतानृतम् ॥'
8. आपो अद्यान्वचारिषं रसेन समगस्महि।पयस्वानग्न आ गहि मा सं सृज वर्चसा।।'
9. सं माग्ने वर्चसा सृज सं प्रजया समायुषा। विद्युमें अस्य देवा इन्द्रो विद्यात्सह ऋषिभिः'

आदि-ये नौ ऋचाएँ अकालमृत्युका नाश करने वाली कही गयी हैं




1. तदिन्नक्तं तद्दिवा महामाहुस्तदयं केतो हद आ वि चष्टे। शुनः शेपो यमसद्गृभीतः सो अस्मान् राजा वरुणो मुमोक्तु ॥
2. शुनः शेपो ह्यह्वद् गृभीतस्त्रिष्वादित्यं द्रुपदेषु बद्धः। अवैनं राजा वरुणः ससृज्याद्विद्वाँ अदब्यो वि मुमोक्तु पाशान्।।
3. अव ते हेळो वरुण नमोभिरव यज्ञेभिरीमहे हविभिः । क्षयन्नस्मभ्यमसुर प्रचेता राजन्नेनांसि शिश्रथः कृतानि।। 

कैदमें पड़ा हुआ या अवरुद्ध (नजरबंद)  इत्यादि वह प्रतिदिन इन  तीन ऋचाओंका जप करे  इसके जपसे पापी समस्त पापों से छूट जाता है और रोगी रोग रहित हो जाता है।




1. जो प्रतिदिन इन ऋचाओंसे प्रतिदिन उदित होते हुए सूर्यका उपस्थान करता है तथा उनके उद्देश्यसे सात बार जलाञ्जलि देता है, उसके मानसिक दुःखका विनाश हो जाता है।
2.  'उद्वयं तमसस्परि ज्योतिष्पश्यन्त उत्तरम्। देवं देवत्रा सूर्यमगन्म ज्योतिरुत्तमम्॥
 3. उदु त्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतवः। दृशे विश्वाय सूर्यम्॥'



पुरीष्यासो अग्नयः प्रावणेभिः सजोषसः। जुषन्तां यज्ञमट्ठहोऽनमीवा इषो महीः ॥    आरोग्यकी कामना करनेवाला रोगी इस ऋचाका जप करे। इसी ऋचाका आधा भाग शत्रुनाशके लिये उत्तम है। अर्थात् शत्रुकी बाधा दूर करनेके लिये इसका जप करना चाहिये। इसका सूर्योदय के समय जप करनेसे दीर्घ आयु, मध्याह्नमें जप करनेसे अक्षय तेज और सूर्यास्त का जेल में जप करनेसे शत्रुनाश होता है।

• आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः। देवा नो यथा सदमिद् वृधे असन्त्रप्रायुवो रक्षितारो दिवेदिवे ॥
इस ऋचाके जपसे दीर्घ आयुकी प्राप्ति होती है। 


• .इमं नु सोममन्तितो हत्सु पीतमुप ब्रुवे। यत्सीमागश्चकमा तत्सु मृळतु पुलुकामो हि मर्त्यः।।  दीर्घ आयु चाहनेवाला इन कौत्ससूक्तका सदा जप करे। 

जातवेदसे सुनवाम सोममरातीयतो नि दहाति वेदः। स नः पर्षदति दुर्गाणि विश्वा नावेव सिन्धुं दुरितात्यग्निः।।
इस मङ्गलमयी ऋचाका मार्गमें जप करें ऐसा करके वह समस्त भयोंसे छूट जाता और कुशलपूर्वक घर लौट आता है। प्रभातकालमें इसका जप करने से दुःस्वप्न का नाश होता है।

• प्र मन्दिने पितुमदर्चता वचो यः कृष्णगर्भा निरहत्रृ जिश्वना ।अवस्यवो वृषणं वज्रदक्षिणं मरुत्वन्तं सख्याय हवामहे ॥
इस ऋचाका जप करनेसे प्रसव करनेवाली स्त्री सुखपूर्वक प्रसव करती है।' 


• 'मा नस्तोके तनये मा न आयौ मा नो गोद मा नो अश्वेषु रीरिषः । वीरान्मा नो रुद्र भामितो वधीहॅविष्मन्तः सदमित्त्वा हवामहे ॥ 
• उप ते स्तोमान्यशुपा इवाकरं रास्वा पितर्मरुतां सुम्नमस्मे । भद्रा हि ते सुमतिर्मूळयत्तमाथा वयमव इत्ते वृणीमहे ॥
तीन दिन उपवास करके पवित्रतापूर्वक  इन  दो ऋचाओं द्वारा गूलर की घृत युक्त समिधाओ का हवन करे। ऐसा करनेसे मनुष्य मृत्यु के समस्त पाशोंका छेदन करके रोगहीन जीवन बिताता है।