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14 / Aug / 2023


देवी की उपासना के प्रसंग का वर्णन


नारदजी ने पूछा-महाराज ! देवी की आराधना रूपी श्रेष्ठ धर्म का क्या स्वरूप है तथा किस प्रकारसे उपासना करनेपर देवी परमपद प्रदान करती हैं ? पूजा की क्या विधि है तथा कैसे, करें किस स्तोत्र से आराधना करनेपर भगवती दुर्गा कष्टप्रद नरक से मनुष्य का उद्धार करती है ?


भगवान नारायण कहते हैं-परम विद्वान् देवर्षि नारद ! जिस प्रकार धर्मपूर्वक आराधना करनेपर भगवती स्वयं प्रसन्न हो जाती हैं। वह प्रसंग अब तुम मनको एकाग्र करके मुझसे मुनो । नारद ! यह संसार अनादि है । इसमें आकर जो भगवती जगदंबा की उपासना करता है, वह चाहे घोर से घोर संकट में ही क्यों न पड़ा हो परंतु सर्वशक्तिमयी भगवती स्वयं उसकी रक्षा करनेमें संलग्न हो जाती है। अतएव प्राणी सम्यक् प्रकार से देवी की पूजा करे । यही उसका परम कर्तव्य है ।


अब पूजा की विधि सुनो प्रतिपदा तिथि में भगवती जगदंबा की गोघृत से पूजा होनी चाहिये-अर्थात् पोडशोपचार से पूजन करके नैवेद्य के रूपमें उन्हें गायका धृत अर्पण करना चाहिये एवं फिर वह धृत ब्राह्मण को दे देना चाहिये । इसके फलस्वरूप मनुष्य कभी रोगी नहीं हो सकता ।द्वितीया तिथि का पूजन करके भगवती जगदंबा को चीनी का भोग लगाये और ब्राह्मण को दे दे । यो करनेसे मनुष्य दीर्घायु होता है । तृतीया के दिन भगवती की पूजा में दूध की प्रधानता होनी चाहिये एवं पूजनके उपरान्त वह दूध ब्राह्मण को दे देना उचित है । यह सम्पूर्ण दुःखों से मुक्त होनेका एक परम साधन है । चतुर्थी के दिन मालपुआ का नैवेद्य अर्पण किया जाय और फिर वह योग्य ब्राह्मणको दे दिया जाय । इस अपूर्व दान मात्र से ही किसी प्रकार विघ्न सामने नहीं आ सकते । पञ्चमी तिथि के दिन पूजा परके भगवतीको केला भोग लगाये और यह प्रसाद बाह्णण दे दे; ऐगा करनेसे पुरुषकी बुद्धिका विकास होता है। षष्ठी तिथि के दिन देवीके पूजनमं मधुका महत्व बताया गया है। वह मधु ब्राह्मण अपने उपयोग में लेइसके प्रभाव से साधक सुंदर रूप प्राप्त करता है ।


सप्तमी तिथि के दिन भगवती की पूजा में गुड़का नैवेद्य अर्पण करके ब्राह्मणों दे देना चाहिये । द्धिजवर !ऐसा करनेसे पुरुष शोकमुक्त हो सकता है । अष्टमी तिथि के दिन भगवतीको नारियल का भोग लगाना चाहिये । फिर नैवेद्य रूप वह नारियल ब्राह्मण को दे देना चाहिए । इसके फल रूप उस पुरुष के पास किसी प्रकारके संताप नहीं आ सकते । नवमी तिथि में भगवती को धानका लावा अर्पण करके ब्राह्मण को दे देना चाहिये । इस दानके प्रभावसे पुरुष इस लोक और परलोकमें भी मुखी रह सकता है । मुने ! दशमी तिथि के दिन भगवतीको काले तिलका नैवेद्य अर्पण करना चाहिये । पूजनके पश्चात् वह नैवेद्य ब्राह्मण अपने काममें ले ले। ऐसा करनेसे यमलोकका भय भाग जाता है। जो एकादशी के दिन भगवतीको दहीका भोग लगाकर ब्राह्मण को दे देता है, उसपर भगवती जगदम्बा परम संतुष्ट होती हैं । मुनिवर ! द्वादशी के दिन पूजनमें चिउड़ेका मह है । जो उस दिन भगवती को चिउड़ा भोग लगाकर ब्राह्मण को बांट देता है, उसे भगवती अपना प्रेमभाजन बना लेती हैं। त्रयोदशी तिथि के दिन भगवती को चने का नैवेद्य अर्पण करके ब्राह्मण को दे दे। इस नियमका पालन करनेवाली प्रजा संतानवान् हो सकती है । देवर्षे ! जो पुरुष चतुर्दशी के दिन भगवती जगदम्बा सत्तू भोग लगाकर ब्राह्मण को दे देता है। उसपर भगवान शंकर परम प्रसन्न होते हैं। पूर्णिमा के दिन भगवती जगदंबा को खीर भोग लगाकर श्रेष्ठ ब्राह्मण को अर्पण करनेवाला पुरुष अपने समस्त पितरों का उद्धार कर देता है। पूर्णिमा और अमावस्या तिथि की पूजा में कोई अन्तर नहीं है । महामुने ! देवीकी प्रसन्नता प्राप्त करनेके लिये हवन करनेकी बात भी स्पष्ट है । जिस तिथि में जो वस्तु नैवेद्य के लिये बतायी गयी है, उसी वस्तुसे उन - उन तिथि यों में हवन भी करना चाहिये ।यह हवन अखिल अरिष्टों का विनाश कर देता है ।


अब दिन के पूजन की विशेषता बतलाते हैं। रविवार को खीर को नैवेद्य अर्पण करना चाहिये । सोमवार को दूध भोग लगानेकी बात कही गयी है तथा मंगलवार को केला भोग लगाये । नारद ! बुधवार के दिन मक्खन भोग लगाने का आदेश है । बृहस्पतिवारको खांड और शुक्रवार को चीनी भोग लगाया जाय । शनिवार को गाय का घृत नैवेद्यके रूपमें निवेदन किया जाए।


मुनिवर नारद ! अब भगवती जगदम्बाको प्रमन्न करनेके लिये दूसरा परम साधन बतलाता हूँ। तुम उसे आदरपूर्वक सुनो । चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में तृतीया के दिन महुआके वृक्ष में भगवती की भावना करके उसकी पूजा करे । नैवेद्य में पाँच प्रकार के खाद्य पदार्थ उपस्थित करना चाहिए । इसी प्रकार बारहों महीने की तृतीया तिथि के दिन पूजा का विधान है। विधिपूर्वक क्रमशः नैवेद्य अर्पण करें। नारद ! वैशाख में गुड़ से बना हुआ पदार्थ भोग लगाना चाहिए । ज्येष्ठ मा समें भगवती के प्रसन्नतार्थ मधु अर्पण करना चाहिये । आषाढ़ में महुए के रस से बना हुआ पदार्थ भोग लगावे । श्रावण में दही, भादों में चीनी, आश्विन में खीर, कार्तिक में दूध मार्गशीर्ष में फेनी, पौष मे दधि कूर्चिका, माघ में गायका घृत और फाल्गुन में नारियल भोग लगाने का विधान है। यों बारह महीनों में बारह प्रकार के नैवेद्य से भगवती की क्रमशः पूजा करनी चाहिये । मङ्गला, वैष्णवी, माया, कालरात्रि, दुरत्यया महामाया, मातंगी, काली, कमलवासिनी, शिवा, सहस्र चरणा और सर्व मङ्गल रूपिणी-इन नामवाचक बारह पदों का उच्चारण करके महुएके वृक्ष भगवतीकी भावनासे पूजा करे) महुएके वृक्षमें देवदेवेश्वरी भगवती जगदम्बा विराजती हैं । अतः, सम्पूर्ण कामनाओं की सिद्धि के लिये तथा व्रत-समाप्तिके निमित्त पूजा के पश्चात देवीकी स्तुति करे -





नमः पुष्करनेत्रायै जगद्धत्र्यै नमोऽरतु ते । 
माहेश्र्वर्यै मदादेव्यै महामन्गलमूर्तयै ॥

परमा पाहन्त्री च परमार्गप्रदायिनी । 
परमेश्वरी प्रजोत्पत्ति . परब्रह्म स्वरूपिणी ॥

मददात्री मदोन्मत्ता मानगम्या महोन्नता । 
मनखिनी मुनिध्येया मार्तण्डसहचारिणी ॥

जयललोकेश्र्वरी प्राध प्रत्याम्बुदसनिमे ।
महामोहविनाशार्थ पूजितासि सुरामुरैः ॥

यमलोकगायकत्री यमपूज्या यमाग्रजा |
यमनिग्रहरूपा च यजनीये नमो नमः ॥

समस्वभावा सर्वेश्वरी ! सर्वसदविवजिंता ।
संगनाशकरी काम्यरूपा कारूण्यविग्रहा।।

कङ्कालक्रा कामाक्षी मीनाक्षी गर्मभैदिनी ।
माधुर्यरूपशौला च मधुरस्वर पूजिता ॥

महामन्त्रवती मन्त्रगम्या मन्याप्रियङ्करी ।
मनुष्यमानसगमा मन्मथारिप्रियङ्करी ।

अश्र्वश्थवटनिम्बाग्रकपित्यबदरीगते
पनसारारीरादिक्षीरपृक्षस्वरूपिणी।

दुग्धवल्लिनिवासाहे दयनीये दयाधिके । 
दाक्षिण्यकरूणारूपे जय सर्वशवल्लभे।।

भाषांतर


कमल के समान नेत्रों से शोभा पानेवाली भगवतीको नमस्कार है । भगवती माहेश्वरी ! तुम महादेवी हो, जगद्धात्री हो तथा तुम्हारा विग्रह मङ्गलमय है, तुम्हें नमस्कार है। परम बुद्धिमती देवी ! परमा, पाप हन्त्री, पर मार्ग प्रदायिनी परमेश्वरी, प्रजोत्पत्ति परब्रह्म स्वरूपिणी, मददात्री, मदोन्मत्ता मानगम्या, महोन्नता, मनस्विनी; मुनिध्येया, मार्तण्ड सहचारिणी और जयलोकेश्वरी-ये तुम्हारे नाम हैं । प्रलय- कालीन मेघकी भाँति तुम कान्ति धारण करती हो । देवताओं और दानवोने महान् मोह की निवृत्ति के लिये तुम्हारी आराधना की है। यमलोकको मिटानेवाली परम आराध्या भगवती जगदम्बे ! तुम यमपूज्या यमाग्रजा एवं यम-निग्रह-रूपा हो, तुम्हें बार-बार नमस्कार है । भगवती सर्वेश्वरी ! तुम समस्वभावा, सर्वसङ्गविवर्जिताः सङ्गनाशकरी, काम्यरूपा, कारुण्यविग्रहा, कङ्कालक्रा, कामाक्षी, मीनाक्षी मर्मभेदिनी, माधुर्यरूपशीला, मधुर स्वरपूजिता महामन्त्रवती मन्त्र गम्या, मन्त्र प्रियकरी, मनुष्यमानसगमा तथा मन्मथारी- प्रियङ्करी-इन नामों से विख्यात हो । देवी ! पीपल, वट, नीम, आम, कैथ, बेर, कटहल, मदार, करील और महुआ आदि वृक्ष तुम्हारे रूप है । दुग्धवल्लीमें निवास करने वाली देवी ! तुम परम कृपाल एवं दयाकी भण्डार हो । तुम्हारा श्रीविग्रह करुणा से ओत-प्रोत है । सर्वज्ञ जन तुमपर अधिक श्रद्धा रखते हैं, तुम्हारी जय हो ।




पूजा करनेके उपरान्त इस प्रकारके स्तवनसे देवेश्वरी जगदंबा की स्तुति करने वाले मनुष्य को व्रत सम्बन्धी सम्पूर्ण पुण्य सर्वदा सुलभ हो जाते हैं । यह स्तोत्र भगवती के प्रसन्न करनेका परम साधन है । जो मनुष्य इसका निरन्तर पाठ करता है, उसे आधिव्याधि एवं शत्रु भय नहीं पहुँचा सकते । इस स्तोत्र के प्रमावसे धनकी इच्छा करनेवाला धन तथा धर्म चाहने वाला धर्म पा सकता है । यह स्तोत्र ब्राह्मण- को वेदसम्पन्न,क्षत्रिय को विजयशाली, वैश्य को प्रचुर धनवान तथा शूद्र को परम सुखी बना देता है। जो मनुष्य श्राद्ध के समय मन एकाग्र करके इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसके पितरो को एक कल्प तक स्थिर रहनेवाली अक्षय तृप्ति प्राप्त होती है ।

नारद ! इस प्रकार देवताओं भगवती जगदंबा का आराधन एवं पूजन किया है , जो तुम्हें सता दिया गया। जो मानव भक्ति:पूर्वक भगवती की आराधना करता है उसे देवीके लोककी प्राप्ति सहज हो जाती है । विप्र ! भगवती जगदंबा की पूजा करनेसे सम्पूर्ण कामनाएँ सिद्ध हो जाती हैं और पुरुष सम्पूर्ण पापों से रहित निर्मल बुद्धि प्राप्त कर लेता है। नारद ! पुरुष भगवतीकी कृपासे जहाँ -तहाँ घन अथवा मानके विषय में आदर एवं सम्मान प्राप्त करता है। स्वप्न में भी नरक सम्बन्धी किंचिन्मात्र भय उसपर अपना प्रभाव नहीं डाल सकते । भगवती जगदम्बा महामाया हैं। इनका उपासक इनकी कृपासे पुत्र और पुत्रों के संवर्धन- में सफलीभूत रहता है।

नारद ! मैंने जो यह भगवान के चरित्र का प्रतिपादन किया है। इसमें नरकसे उद्धार करनेकी स्वाभाविक शक्ति है। मुने ! महादेवीकी पूजा सम्पूर्ण मङ्गलोंको देनेवाली है।