loader-missing
Language:

07 / Aug / 2020


अट्ठाईस नर्को का वर्णन भाग-१

जब ऋषियों को सूतजी से यह ज्ञात हुआ कि अत्यन्त निन्दनीय कर्म करने वाले पापी जीवात्मा नर्क में जाकर अनेक प्रकार की यातना भोगते  हैं  तो उन्होंने पूछा--हे भगवान! जिस नर्क की आप चर्चा कर रहे हैं, वह किस स्थान पर स्थित है ? नर्क एक है अथवा अनेक हैं ? वहाँ कौन-कौन से कर्म करने वाले जीवात्मा जाते हैं?


ऋषियों का प्रश्न सुन कर सूतजी बोले- हे जिज्ञासु ऋषिगण ! आपका प्रश्न अत्यन्त विस्तृत है। इसके उत्तर में अनेक विद्वानों एवं महर्षियों ने विभिन्न प्रकार की विवेचना की हैं। उन्हीं विवेचनाओं के आधार पर जो कुछ मुझे ज्ञात हुआ है, उसका विवरण मैं आपको संक्षेप में बताता हूँ। नर्क की स्थिति तीनों लोकों के मध्य में दक्षिण की ओर है । यह पृथ्वी के नीचे तथा जल के ऊपर स्थित है। इसके स्वामी यमराज संयम नामक नगर में पितृगणों के साथ निवास करते हुए नरक पर शासन करते हैं। इनके मुख्य सहायक यमदूत कहलाते हैं जो देखने में अत्यन्त विचित्र हैं। जितने वे स्वयं विचित्र एवं भयानक हैं उतने ही उन के अस्त्र शस्त्र भी विचित्र एवं भयानक हैं। यमराज का वाहन भैंसा है जिस पर बैठकर वे विचरण करते हैं। मृत्यु के पश्चात् जीवात्मा को लेकर यमदूत यमराज के पास जाते हैं। यमराज उस जीवात्मा के कर्मों का लेखा-जोखा करके उन्हीं के अनुसार उसके लिए दण्ड की व्यवस्था करते हैं। फिर वे अपने दूतों को आदेश देते हैं कि इस जीव को अमुक नर्क में ले जाओ। इस आदेश के मिलते ही दूत जीवात्मा को लेकर सम्बन्धित नर्क के अधिकारी को सौंप देते हैं। वहां के अधिकारी नवागत जीवात्मा को यमराज द्वारा बताई गई व्यवस्था के अनुसार दण्ड देता है।



जीवात्मा जिन नर्को में यातनाएँ भोगता है, उनकी संख्या अट्ठाईस है । उन नरकों के नाम इस प्रकार हैं तामिस्र, अंध तामिस्र, रौरव, महारौरव,कुम्भीपाक, कालसूत्र, असिपत्रवन, सूकरमुख, अंधकूप, कृमि भोजन, संदश, तप्त सूर्मि, वज्रकंटक शाल्मली, वैतरणी, पूयोद, प्राणरोध, वैशस, लाला भक्ष, सारमेय दान, अवीचि, अय:पान, क्षारकर्दभ, रक्षोगण भोजन, शूलप्रोत, दंदशक, अवर निरोधन, पर्यावर्त तथा सूचिमुख । इन नर्को में पड़ी समस्त जीवात्मा को अपने कर्मों के अनुसार विभिन्न प्रकार की यातनाएं भोगनी पड़ती हैं।



बड़े निन्दनीय पाप कर्मों के लिए अत्यन्त कठोर दण्ड तथा कुछ हल्के पापों के लिए कुछ हल्का दंड दिया जाता है। जब इन कर्मों के अनुसार दण्ड भुगतने के पश्चात् जीवात्मा के कर्मों का क्षय हो जाता है तो उसे नर्क से मुक्ति मिल जाती है। नर्क की यातनाएँ भोग लेने के पश्चात् भी उसके कुछ ऐसे कर्म बचे रहते हैं जो अत्यन्त निंदनीय नहीं होते। उन्हीं कर्मों के आधार पर वह पुनः इस संसार में शरीर धारण करके उनके फलों को भोगता है तथा नये कर्म करता है। अब में यह बताऊँगा कि जीवात्मा को किस प्रकार के कर्मों के फलस्वरूप किस नरक में जाना पड़ता है।


१. तामिस्र नर्क - मैंने आपको जिन अट्ठाईस नरकों के नाम गिनाये हैं, उनमें सर्वप्रथम है तामिस्र नर्क । जिस जीवात्माने अपने जीवन काल में परायी स्त्री को कुदृष्टि से देखा है,उसका अपहरण किया हो अथवा उसके साथ बलात्कार किया हो, दूसरे व्यक्ति के धन या बालक का अपहरण किया हो अथवा उसे नष्ट किया हो, उस धन का उपभोग किया हो, या किसी अन्य व्यक्ति को अपने निन्दनीय कर्मों से दुःख पहुँचाया हो, ऐसा जीवात्मा यमराज के आदेश से तामिस्र नर्क में यातनाएँ भोगने के लिए रखा जाता है । इस नरक में उसे भूखा रखा जाता है तथा अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से उसे मार-पीटकर भयानक यातनाएं दी जाती हैं। यहाँ अंधकार रहता है।


२. अन्धतामिस्त्र - इस नर्क में तो तामिस्त्र से भी अधिक अन्धकार होता है। यहाँ कुछ भी दिखाई नहीं देता। केवल हाथ से टटोल कर ही प्रत्येक वस्तु का अनुमान लगाया जाता है। जहाँ जीवात्मा को कुछ दिखाई नहीं देता वहाँ यमदूत प्रत्येक वस्तु तथा जीवात्मा की गतिविधियों को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। यहाँ उसे इतनी भयंकर पीड़ा दी जाती हैं कि उसे सहन करना उसकी शक्ति के बाहर हो जाता है और वह अपने कुकृत्यों को स्मरण करके पछताता तथा विलाप करता है। यहाँ केवल वे जीवात्मा भेजे जाते हैं जिन्होंने अपने जीवनमें छल-कपट या विश्वासघात किया होता है।


३. रौरव नर्क - यहां तीसरे स्थान पर आता है। जीवात्मा ज्यों ही इस नर्क में प्रवेश करता है उसे रुरु नाम के पशु चारों ओर से घेर लेते हैं। इन पशुओं के कारण ही इस नर्क का नाम रौरव नर्क पड़ा है। रुरु पशु बड़ा हिंसक होता है । वे जीवात्मा को चारों ओर से घेर कर नोच-नोचकर खाने लगते हैं। जब उनके नुकीले पंजे मनुष्य के शरीर में गड़ते हैं तो वह पीड़ा से चीखने-चिल्लाने लगता है परन्तु उससे त्राण पाने का उसके पास कोई उपाय नहीं होता। इस नर्क में उन जीवों को भेजा जाता है जिन्होंने अपने जोवन काल में अहंकार, स्वार्थ एवं द्वेष भावना के वशीभूत होकर दूसरे जीवों को भारी मानसिक, शारीरिक अथवा अन्य प्रकार की हानि पहुँचाई होती है। जिस-जिसको उसने अपने जीवन में हानि पहुंचाई होती है, वे सभी रुरु पशु का रूप धारण करके रौरव नर्क में उससे भयंकर प्रतिशोध लेते हैं।

४. महारौरव -  इस नर्क में वे जीवात्मा आते हैं जिन्होंने अपनी स्वार्थपूर्ति अथवा उदर पोषण के लिए दूसरे व्यक्तियों की हिंसा की होती है। अकारण ही निरीह पशु-पक्षियों की हत्या करने वाले मांसाहारी जीवों को भी महारौरव नर्क में ही स्थान मिलता है। यहाँ के रुरु नामक पशु रौरव नर्क के पशुओं से भी अधिक भयंकर होते हैं। वे उस जीवात्मा को एकदम मार कर नहीं खा जाते। वे उसके शरीर का मांस नोच-नोचकर खाते हैं और इस प्रकार उसे असहय पीड़ा पहुँचाते हैं। यहाँ की यातनाओं से निर्दय व्यक्ति भी दहल उठते हैं।

५. कुम्भीपाक - जो जीवात्मा अपने जीवन काल में जीवित प्राणियों को सेककर, पकाकर या भूनकर खाते हैं, ऐसे क्रूर स्वभाव वाले नराधम व्यक्तियों को कुम्भीपाक नर्क में भेजते हैं। उन पापात्माओं को तेल के उबलते कड़ाहों में डाल कर शब्दातीत यातना दी जाती है । वे पीड़ा से तड़पते हैं, चिल्लाते हैं, परन्तु वहाँ उनकी सुनने वाला कोई नहीं होता। उन्हें तेल के कड़ाहों में तब तक उबाला जाता है जब तक उनका पाप कर्मों का क्षय नहीं हो जाता।

६. कालसूत्र - यह नर्क तांबे के पत्ते का बना है । इसकी बनावट इस प्रकार की है कि इसकी दीवारें तथा फर्श लाल अग्नि की भाँति निरन्तर तपते रहते हैं। इसमें प्रवेश करते ही इसकी भयंकर ज्वाला से जीवात्मा झुलसने लगता है । इसकी जलन इतनी असहय होती है कि वह शरीर को घुमाकर उससे बचाना चाहता है किन्तु बच नहीं पाता क्योंकि उस स्थान की जलती दीवारें छत एवं फर्श सब ओर से घेरे रहते है। यहाँ का वास अत्यन्त दीर्घकालीन होता है। उससे शीघ्र छुटकारा नहीं मिलता। एक पशु के शरीर पर रोंगटों की जितनी संख्या होती है, उतने हजार वर्षों तक पापी जीवात्मा को वहाँ रहना पड़ता है। इस नर्क में वे व्यक्ति जाते हैं जो अपने जीवन काल में धर्म, देवताओं, गुरुजनों तथा ब्राह्मणों का तिरस्कार एवं अपमान करते हैं।


७. असिपत्रवन - नुकीले पत्तों वाले इस वन में यमराज उन जीवात्माओं को यातनाएँ सहन करने के लिए भेजते हैं जो अपने धर्म का परित्याग या निन्दा करके दूसरा धर्म स्वीकार करते हैं अथवा धर्म के नाम पर पाखण्ड रचकर अपने अहंकार का प्रदर्शन करते हैं। यहाँ उनके शरीर में केवल कटार जैसे नुकीले पत्ते ही नहीं चुभते यमदूत भी उन्हें अपने तीक्ष्ण शस्त्रों से पीड़ा पहुंचाते हैं । जब वे यमदूतों की भयंकर मार से बचने के लिए इधर-उधर दौड़ते हैं तो नुकीले पत्ते उनके शरीर में चुभकर उन्हें और भी दुःखी करते हैं। यह स्थिति उनके लिए अत्यन्त दुःखदायी होती है । वे पीड़ा से तड़पते हैं किन्तु बचने का कोई उपाय नहीं होता।    

                 



  (क्रमश)