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03 / Oct / 2022


अट्ठाईस नर्को का वर्णन भाग-२

८. सूकर मुख - इस नर्क की आकृति सुअर के मुख जैसी होती है। जिस प्रकार सुअर अपने शिकार को अपने दांतों से चबाकर पीसता है, उसी प्रकार यमदूत इस में आने वाले जीवात्माओं को खरल में डालकर पीसते हैं। इस नरक में उन जीवात्माओं को डाला जाता है जो अपने जीवनकाल में अन्याय करते हैं, निरपराधों को सताते हैं या मारते हैं और ब्रह्म हत्या जैसे निन्दनीय कर्म करते हैं। इससे उन्हें अपने पापों का स्मरण करके पश्चाताप होता है।

९. अंधकूप - यह नर्क अंधे कुए की भाँति है । जिस प्रकार अंधे कुए की गहराई का पता नहीं चलता, उसी प्रकार अंधकूप नर्क के तल का आभास नहीं मिलता। इस नर्क में वे पापी जीवात्मा भेजे जाते हैं। जो अपने जीवन काल में हिंसक प्राणियों के प्रभु द्वारा निर्मित भोजन को नष्ट करके उन्हें भूखों मारने की चेष्टा करते हैं। इस नर्क में रहकर उन्हें भी उसी प्रकार से भूखों रहकर व्याकुल होना पड़ता है जिस प्रकार उन्होंने अपने जीवन काल से उन्हें भूखों मारा था।

१०. कृमि भोजन - कृमि भोजन नर्क में कृमियों अर्थात कीड़ों की प्रधानता होती है। यहाँ आने वाले जीवात्मा को स्वयं कीड़ा बनकर अपने भोजन की खोज करनी पड़ती है तथा अन्य कीड़े उसे नोच-नोचकर खाते हैं जिससे वह पीड़ा से तड़पता है। बचने का प्रयत्न करता है, परन्तु बच नहीं पाता। साधु- संतों,ब्राह्मणों एवं गुरुजनों का भोजन आदि से सत्कार न करने वाला जीव इस नर्क में जाता है।

११. संदश - इस नर्क में आने वाले प्राणियों के शरीर की त्वचा को यमदूत लोहे की गर्म जलती हुई लाल-लाल संडासियों तथा चींमटियों से खींच-खींचकर मर्मान्तक पीड़ा पहुँचाते हैं। इससे पापी के शरीर की त्वचा तो जलती ही है, साथ ही दुर्गन्धि फैलता हुआ माँस भी शरीर से निकल आता है। इस प्रकार जीवात्मा को यहाँ तीन प्रकार की पीड़ाएँ सहनी पड़ती है। यहाँ उन्हीं व्यक्तियों की जीवात्माएँ आती हैं जो जीवन काल में किसी व्यक्ति के धन, आभूषण आदि चुराते हैं। निर्धन व्यक्तियों से ये वस्तुएं लूटकर उन्हें और भी दुःख पहुंचाते हैं।

१२. तप्तसूर्मि - जो दुश्चरित्र व्यक्ति कामवासना से अंधे होकर अपने जीवन में चरित्रहीन स्त्री अथवा पुरुष के साथ अवैध सम्बन्ध रखते हैं उन्हें मरने के पश्चात् तप्तसूर्मि नर्क में भेजा जाता है। यहाँ पुरुष को लोहे की तपती हुई नारी मूर्ति से और स्त्री को पुरुष की जलती हुई लोहे की मूर्ति से आलिंगन एवं समागम करने को विवश किया जाता है। जब पुरुष अथवा स्त्री ऐसा करने से हिचकते हैं तो यम के दूत चमड़ों की कंटीली चाबुकों से मार-मार कर उन्हें ऐसा करने को बाध्य करते हैं।

१३. बज्रकंटकशाल्मली - इस नर्क में शाल्मली के विशाल वृक्ष हैं जिन पर वज्र के समान तिक्ष्ण एवं भयंकर काँटे उगे होते हैं। कुछ व्यक्ति काम वासना में इतने अंधे हो जाते हैं कि यदि उन्हें स्त्री,या पुरुष की कामवासना को शांत करने के लिए नहीं मिलते तो वे पशुओं के साथ मैथुन करके अपनी काम पिपासा को शांत करते हैं। ऐसे दुराचारी व्यक्तियों को मरने के पश्चात् वज्रकंटक शाल्मली नर्क में यातनाएँ भुगतने के लिए भेजा जाता है । यहाँ पहुँचने पर उन्हें शाल्मली के कांटों के साथ मैथुन करने के लिए बाध्य किया जाता है। जब वे पीड़ा से चीत्कार करते हुए पीछे हटते हैं तो उन्हें यमदूत जबरदस्ती शाल्मली वृक्ष पर चढ़ाते हैं। जब वे वृक्ष की सबसे ऊँची चोटी तक पहुँच जाते है तब उन्हें टाँग पकड़कर नीचे खींच लिया जाता है, जिससे वे वृक्ष के तीक्ष्ण काँटों से टकरा कर लहूलुहान होते हुए नीचे गिरते हैं। 

१४. वैतरणी - वैतरणी नर्क नदी के रूप में बहता हुआ नर्क है जिसमें जल के स्थान पर रक्त, मवाद, विष्ठा, मूत्र आदि बहते हैं। बीच-बीच में अस्थियां तथा माँस के घिनौने टुकड़े बहते दिखाई देते हैं । वैतरणी में असंख्य हिंसक प्राणी निवास करते हैं जो जीवात्मा के आते ही उसे फाड़कर खा जाने के लिए आते हैं तथा उसके शरीर के एक-एक अंग को निर्दयतापूर्वक काटकर खाते एवं पीड़ा पहुंचाते हैं । वैतरणी में उन व्यक्तियों को डाला जाता है जिन्होंने अपने जीवन काल में क्षुद्र उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अपने धर्म और कर्तव्य का त्याग किया होता है।

१५. पूयोद - पूयोद नर्क एक समुद्र के सदृश है जिसमें खून, मवाद, विष्टा, मूत्र, मांस आदि घृणित वस्तु इस प्रकार लहराती हैं जिस प्रकार समुद्र के लहरों पर उसके फेन फैले होते हैं। इस सागर में उन उच्च कुल में उत्पन्न व्यभिचारी स्त्री-पुरुषों को डाला जाता है जो निम्न वर्ग के स्त्री-पुरुषों के साथ अनुचित सम्बन्ध रखकर उनके साथ मैथुन करते हैं । ऐसी जीवात्माओं को इस सागर में रखकर इसमें फैली हुई घृणित वस्तुओं को खाने-पीने के लिए विवश किया जाता है। न खाने पर वे वस्तुएँ उनके मुख में ठूस दी जाती हैं।

१६. प्राणरोध - यह नर्क ऐसे मरुस्थल की भाँति है जिसमें तपती हुई बालू रेत के अतिरिक्त और कुछ नहीं होता। इस नर्क में आने वाले जीवात्माओं को बालू रेत में आधा गाड़ देते हैं। फिर उन पर तीक्ष्ण तीरों की बौछार करते हैं जिनकी पीड़ा से वे चीत्कार कर उठते हैं । जब सम्पूर्ण शरीर तीरों से ढक जाता है तो उन तीरों को निकाल फिर उन पर तीरों की वर्षा की जाती है। निरन्तर यह क्रम चलता है। यहाँ उन कुकर्मियों को लाया जाता है जो बिना किसी कारण के पशु पक्षियों का शिकार करते हैं अथवा उनको पकड़कर पिंजरों में बन्द करके या किसी अन्य प्रकार से बंधन में रखते हैं। 

१७. वैशस - वैशस नरक में ऐसे दम्भी, ढोंगी, पाखण्डी अथवा मिथ्या आडम्बर रखने वाले व्यक्तियों को रखा जाता है जो लोगों को भुलावा देकर यज्ञ या बलि के नाम पर पशुओं अथवा मनुष्यों की हत्या करते हैं। ऐसे लोगों के शरीरों को अणु-अणु काट कर यम के दूत भयंकर यातनाएँ पहुँचाते हैं। रोने-चीखने पर उन्हें और भी पीटा जाता है।

१८. लालाभक्ष - यह नर्क भी वैतरणी नर्क की भाँति नदी के रूप में हैं । इसमें जल के स्थान पर वीर्य भरा होता है। जो प्राणी अपने जीवन काल में अत्यधिक काम वासना के वशीभूत होकर अपनी अथवा परायी स्त्री को वीर्यपान करने के लिए विवश करते हैं उन्हें लालाभक्ष नर्क में धकेल कर जल के स्थान पर वीर्य पीने को विवश किया जाता है।

१९.सारमेयादान - इस में बड़े भयानक राक्षसी वृत्ति के शिकारी कुत्ते रहते हैं ? जो जीवात्मा के आते ही भूखे भेड़ियों की भाँति उन पर टूट पड़ते हैं और उसकी मांस-मज्जा को स्वाद ले लेकर झिंझोड़ कर खाते हैं। जीवात्मा उनसे बचने के लिए इधर-उधर भागता है, परन्तु शिकारी कुत्तों के आक्रमण से बच नहीं पाता। यहाँ ऐसे जीवात्माओं को लाकर पटका जाता है जिन्होंने मृत्युलोक में किसी को विष दिया हो, किसी के घर में आग लगाई हो, किसी को लूटा हो अथवा किसी अन्य प्रकार से दूसरे लोगों को दुःख पहुँचाया हो या अपने मनोरंजन के लिए किसी निर्दोष को सताया हो। 

२०. अवीचि - अवीचि नरक में एक विशाल सीधा पथ- रीला पर्वत है जिसके नीचे कंकड़ पत्थरों से भरा हुआ गहरा गड्ढा है। जिस जीवात्मा को यमराज इसमें दण्ड भोगने के लिए भेजते हैं, उसे यमदूत पर्वत के शिखर पर ले जाकर नीचे धकेलते हैं जिससे वह मार्ग के पत्थरों से टकराता हुआ गड्ढे में नुकीले कंकड़-पत्थरों पर गिरता है। यमदूत उसे उस गड्ढे में से निकाल कर पर्वत शिखर पर चढ़ने के लिए बाध्य करते हैं। जब वह शिखर पर पहुँच जाता है तो उसे फिर नीचे धकेल दिया जाता है। निरन्तर यही क्रम चलता रहता है । यहाँ उन व्यक्तियों को लाया जाता है जो छल-कपट का सहारा लेकर मिथ्या भाषण करते, झूठी साक्षी देते या झूठ बोलकर दूसरों को हानि पहुंचाते हैं।

२१. अय: पान - जो व्यक्ति अपने जीवन काल में मांस- मदिरा का सेवन करते हैं अथवा अखाद्य वस्तु खाते हैं उन्हें यमदूत इस नर्क में लाकर गर्म रेत पर लिटाकर गर्म-गर्म सीसे का रस पिलाते हैं।