मरण के बाद कि क्रियाओं का महत्व क्या है भाग -1
हे मुनियो! एक बार विनिता पुत्र गरुड़ के हृदय में इस ब्रह्मांड के सभी लोकोंको देखनेकी इच्छा हुई। अत: हरिनाम का उच्चारण करते हुए उन्होंने सभी लोक का भ्रमण किया। पाताल, पृथ्वी लोक तथा स्वर्गलोक का भ्रमण करते हुए वे पृथ्वीलोक के दुःख से अत्यन्त दुखित एवं अशान्तचित्त होकर पुनः वैकुण्ठ लोक वापस आ गये।
बैकुण्ठ लोक में न रजोगुण की प्रवृत्ति है, न तमोगुण की ही प्रवृत्ति है, [मृत्युलोकके समान] रजोगुण तथा तमोगुण से मिश्रित सत्त्वगुण की भी प्रवृत्ति वहाँ नहीं है वहाँ केवल शुद्ध सत्वगुण ही अवस्थित रहता है। वहाँ माया भी नहीं है, यहाँ किसीका विनाश नहीं होता । वहाँ राग-द्वेष आदि विकार भी नहीं है।
भगवान हरि के दर्शन करनेसे विनितासुत गरुड़ का अन्तःकरण आनन्दविभोर हो उठा। उनका शरीर रोमांचित हो गया। उनके नेत्रोंसे प्रेमाश्रुओंकी धारा बहने लगी। आनन्दमय होकर उन्होंने प्रभुको प्रणाम किया। प्रणाम करते हुए अपने वाहन गरुड़ को देखकर भगवान विष्णु ने कहा- हे पक्षिन् । आपने इतने दिनोंमें इस जगत्की किस भूमिका परिभ्रमण किया है? गरुड़ ने कहा-भगवन्! आपकी कृपा से मैंने समस्त त्रिलोकी का परिभ्रमण किया है। उनमें स्थित जगत्के सभी स्थावर और जङ्गम प्राणियों को भी देखा। हे प्रभो! यमलोक को छोड़कर पृथ्वीलोकसे सत्यलोकतक सब कुछ मेरे द्वारा देखा जा चुका है। सभी लोकोंकी अपेक्षा भुलोक प्राणियोंसे अधिक परिपूर्ण है। सभी योनियों में मानवयोनि ही भोग और मोक्षका शुभ आश्रय है। अतः आकृतियों के लिये ऐसा लोक न तो अभीतक बना है और न भविष्यमें बनेगा। देवता लोग भी इस लोककी प्रशंसा के गीत गाते हुए कहते हैं-'जो लोग पवित्र भारत भूमि में जन्म लेकर निवास करते हैं, वे धन्य है देवता लोग भी स्वर्ग एवं अपवर्गरूप फलकी प्राप्तिके लिये पुनः भारत भूमि में मनुष्य रूप में जन्म लेते हैं |
हे प्रभु! आप यह बतानेकी कृपा करें कि मृत्यु को प्राप्त हुआ प्रेत किस कारण पृथ्वी पर डाल दिया जाता है?
उसके मुख में पच्चरत्न क्यों डाला जाता है? मरे हुए प्राणी के नीचे लोग कुश किसलिये बिछा देते हैं? उसके दोनों पैर दक्षिण दिशा की और क्यों कर दिये जाते हैं? मरनेके समय मनुष्य के आगे पुत्र-पौत्रादि क्यों खड़े रहते हैं? हे केशव! मृत्युके समय विविध वस्तुओंका दान एवं गोदान किसलिये दिया जाता है? बन्धु-बान्धव, मित्र और शत्रु आदि सभी मिलकर क्यों क्षमा याचना करते हैं? किससे प्रेरित होकर लोग मृत्युकालमें तिल, लोहा, स्वर्ण, कपास, नमक, सप्तधान्य, भूमि और गौका दान देते हैं? प्राणी कैसे मरता है और मरने के बाद कहाँ जाता है? उस समय वह आतिवाहिक शरीर (निराधार-रूपमें आत्माको वहन करनेवाले शरीर)-को कैसे प्राप्त करता है? अग्नि देनेवाले पुत्र और पौत्र उसे कंधे पर क्यों ले जाते हैं? शवमें घृतका लेप क्यों किया जाता है? उस समय एक आहुति देनेकी परम्परा कहाँसे चली है? शवको भूमिस्पर्श किसलिये करवाया जाता है? स्त्रियां उस मरे हुए व्यक्ति के लिये क्यों विलाप करती हैं? शवके उत्तर दिशा में 'यम सूक्त' का पाठ क्यों किया जाता है? मरे हुए व्यक्तिको पीनेके लिये जल एक ही वस्त्र धारण करके क्यों दिया जाता है? उस समय सूर्य बिम्ब-निरीक्षण, पत्थरपर स्थापित यव, सरसों, दूर्वा और नीम की पत्तियों को स्पर्श करनेका विधान क्यों है? उस समय स्त्री एवं पुरुष दोनों नीचे-ऊपर एक ही वस्त्र क्यों धारण करते हैं? शवका दाह-संस्कार करनेके पश्चात् उस व्यक्तिको अपने परिजनोंके साथ बैठकर भोजन आदि क्यों नहीं करना चाहिए। मरे हुए व्यक्तिके पुत्र दस दिन पूर्व किसलिये पिण्डोंका दान देते हैं? चबूतरे (वेदी)-पर पके हुए मिट्टीके पात्रमें दूध क्यों रखा जाता है? रस्सीसे बँधे हुए तीन काष्ठ (तिगोड़िया)-के ऊपर रात्रि में गांव के चौराहेपर एकान्तमें वर्षपर्यन्त प्रतिदिन दीपक क्यों दिया जाता है? शवका दाह-संस्कार तथा अन्य लोगोंके साथ जल-तर्पणकी क्रिया क्यों की जाती है? हे भगवन्! मृत्यु के बाद प्राणी आतिवाहिक शरीर(प्रेत)में चला जाता है, उसके लिये नौ पिण्ड देने चाहिये, इसका क्या प्रयोजन है? किस विधानसे पितरोंको पिण्ड प्रदान करना चाहिये और उस पिण्ड को स्वीकार करनेके लिये उनका आवाहन कैसे किया जाय?
हे देव! यदि ये सभी कार्य मरनेके तुरंत बाद सम्पन्न हो जाते हैं तो फिर बादमें पिंडदान क्यों किया जाता है? पूर्व किये गये पिंडदान के बाद पुनः पिंडदान या अन्य क्रियाओंको करनेकी क्या आवश्यकता है? दाह-संस्कार के बाद अस्थि-संचयन और घट फोड़नेका विधान क्यों है? दूसरे दिन और चौथे दिन साग्निक द्विज के स्नान का विधान क्यों है? दसवें दिन सभी परिजनोंके साथ शुद्धिके लिये स्नान क्यों किया जाता है? दसवें दिन तेल एवं उबटनका प्रयोग क्यों किया जाता है। उस तेल और उबटनका प्रयोग भी एक विशाल जलाशयके तटपर होना अपेक्षित है, इसका क्या कारण है? दसवें दिन पिंडदान क्यों करना चाहिये? एकादश के दिन वृषोत्सर्ग आदिके सहित पिंडदान करनेका क्या प्रयोजन है? पात्र, पादुका, छत्र, वस्त्र तथा अंगूठी आदि वस्तुओंका दान क्यों दिया जाता है? तेरहवें दिन पददान क्यों दिया जाता है। वर्षपर्यन्त सोलह श्राद्ध क्यों किये जाते हैं तथा तीन सौ साठ - सान्नोदक घट क्यों दिये जाते हैं। प्रेततृप्तिके लिये प्रतिदिन अन्नसे भरे हुए एक घट का दान क्यों करना चाहिये।
हे प्रभो। मनुष्य अनित्य है और समय आनेपर ही वह मरता है, किंतु मैं उस छिद्रको नहीं देख पाता हूँ, जिससे जीव निकल जाता है? प्राणी के शरीर में स्थित किस छिद्रसे पृथ्वी, जल, मन, तेज, वायु और आकाश निकल जाते हैं? है जनार्दन! इसी शरीरमें स्थित जो पाँच कर्मेन्द्रियाँ और पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ तथा पाँच वायु हैं, वे कहाँसे निकल जाते हैं। लोभ, मोह, तृष्णा, काम और अहंकाररूपी जो पाँच चौर शरीरमें छिपे रहते हैं, वे कहाँसे निकल जाते हैं ।
हे माधव! प्राणी अपने जीवनकाल में पुण्य अथवा पाप जो कुछ भी कर्म करता है, नाना प्रकारके दान देता है, वे सब शरीरके नष्ट हो जानेपर उसके साथ कैसे चले जाते हैं। वर्षके समाप्त हो जानेपर भी मरे हुए प्राणी के लिये सपिण्डीकरण क्यों होता है? उस प्रेतकृत्यमें (सपिण्डन)प्रेत पिण्ड का मिलन किसके साथ किस विधिसे होना चाहिये, इसे आप बताने की कृपा करें।
इस भारतवर्ष में रहनेवाले लोग बहुत-से दुःखोंको भोग रहे हैं मैंने वहाँ देखा है कि उस देश के मनुष्य राग-द्वेष तथा मोह आदि में आकण्ठ डूबे हुए हैं। उस देशमें कुछ लोग अन्धे हैं, कुछ टेढ़ी दृष्टिवाले हैं, कुछ दुष्ट वाणीवाले हैं, कुछ लूले हैं, कुछ लंगड़े हैं, कुछ काने हैं, कुछ बहरे हैं, कुछ गूँगे हैं, कुछ कोढ़ी हैं, कुछ लोमश (अधिक रोमवाले) हैं, कुछ नाना रोग से घिरे हैं और कुछ आकाश-कुसुमकी तरह नितान्त मिथ्या अभिमान से चूर हैं। उनके विचित्र दोषोंको देखकर तथा उनकी मृत्युको देखकर मेरे मनमें जिज्ञासा उत्पन्न हो गयी है कि यह मृत्यु क्या है? इस भारतवर्ष में यह कैसी विचित्रता है? ऋषियों से मैंने पहले ही इस विषयमें सामान्यतः: यह सुन रखा है कि जिसकी विधिपूर्वक वार्षिक क्रिया नहीं होती हैं, उसकी दुर्गति होती है। फिर भी है प्रभो! इसकी विशेष जानकारीके लिये मैं आपसे पूछ रहा हूँ। हे उपेन्द्र ! मनुष्य को मृत्यु के समय उसके कल्याण के लिये क्या करना चाहिये? कैसा दान देना चाहिये। मृत्यु और श्मशान-भूमितक पहुँचनेके बीच कौन-सी विधि अपेक्षित है। चितामें शवको जलानेकी क्या विधि है? तत्काल अथवा विलम्बसे उस जीवको कैसे दूसरी देह प्राप्त होती है, यमलोक (संयमनी नगरी)-को जानेवालेके लिये वर्षपर्यन्त कौन-सी क्रिया करनी चाहिए और बुद्धि अर्थात् दुराचारी व्यक्ति की मृत्यु होनेपर उसका प्रायचित्त क्या है?
श्रीकृष्ण ने कहा-हे भद्र! आपने मनुष्योंके हितमें बहुत ही अच्छी बात पूछी है। सावधान होकर इस समस्त और्ध्वदैहिक क्रियाको भलीभाँति सुनें।
क्रमश: अगले भाग में