मरण के बाद कि क्रियाओं का महत्व क्या है भाग-5
अब पददानका वर्णन सुनो। छत्र, जूता, वस्त्र अंगूठी, कमण्डलु, आसन, चित्र और भोज्य पदार्थ-ये आठ प्रकारके पद हैं- यमद्वारपर पहुँचनेके लिये जो मार्ग बताये गये हैं, वे अत्यन्त दुर्गन्धदायक मवादादि तथा रक्तदिसे परिव्याप्त हैं। अतः उस मार्गमें स्थित वैतरणी नदी को पार करने के लिये वैतरणी गौका दान करना चाहिए। जो गौ सर्वाङ्गे काली हो, जिसके स्तन भी काले हों, उसे वैतरणी गौ माना गया है।
तिल, लोहा, स्वर्ण, कपास, लवण, सप्तधान्य, भूमि और गौ-ये पापसे शुद्धिके लिये पवित्रता में एक से बढ़कर एक हैं। इन आठ दानोंको महादान कहा जाता है। इनका दान उत्तम प्रकृति वाले ब्राह्मण को ही देना चाहिये - तिलपात्र, घृतपात्र, शय्या, उपस्कर तथा और भी जो कुछ अपनेको इष्ट हो, वह सब देना चाहिये। अश्व, रथ, भैंस, भोजन, वस्त्रका दान ब्राह्मण को करना चाहिये। अन्य दान भी अपनी शक्ति के अनुसार देना चाहिये। हे पक्षिराज! इस पृथ्वी पर जिसने पाप का प्रायश्चित कर लिया है, वह दस प्रकारके दान भी दे चुका है, वैतरणी गौ एवं अष्टदान कर चुका है, तिलसे भरा पूर्ण पात्र, घीसे भरा हुआ पात्र, शय्यादान और विधिवत् पददान करता है तो वह नरकरूपी गर्भमें नहीं आता है अर्थात् उसका पुनर्जन्म नहीं होता है।
पंडित लोग स्वतन्त्र रूपसे भी लवण दान करनेकी इच्छा रखते हैं, क्योंकि यह लवण-रस विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुआ है, इस पृथ्वी पर मरणासन्न प्राणी के प्राण जब न निकल रहे हों तो उस समय लवण-रसका दान उसके हाथसे दिलवाना चाहिये। क्योंकि यह दान उसके लिये स्वर्गलोक के द्वार खोल देता है। मनुष्य स्वयं जो कुछ दान देता है, परलोक में वह सब उसे प्राप्त होता है। यहाँ उसके आगे रखा हुआ मिलता है। हे पक्षिन्! जिसने यथाविधि अपने पापोंका प्रायश्चित्त कर लिया है, वही पुरुष है वही अपने पापों को भस्मसात् करके स्वर्गलोक में सुखपूर्वक निवास करता है।
हे खगराज ! गौका दूध अमृत है। इसलिये जो मनुष्य दूध देनेवाली गौका दान देता है, वह अमृतत्व को प्राप्त करता है। पहले कहे गये तिलादिक आठ प्रकारके दान देकर प्राणी गन्धर्वों में निवास करता है यमलोक का मार्ग अत्यधिक भीषण ताप से युक्त है, अतः: छत्रदान करना चाहिये। छत्रदान करनेसे मार्गमें सुख प्रदान करनेवाली छाया प्राप्त होती है। जो मनुष्य इस जन्म में पादुका का दान देता है, वह 'असिपत्रवन' के मार्ग को घोड़े पर सवार होकर सुखपूर्वक पार करता है। भोजन और आसनका दान देनेसे प्राणीको परलोकगमनके मार्गमें सुखका उपभोग प्राप्त होता है। जलसे परिपूर्ण कमण्डलु का दान देनेवाला पुरुष सुखपूर्वक परलोकगमन करता है। यमराज के दूत महाक्रोधी और महाभयंकर हैं काले एवं पीले वर्णवाले उन दूतोंको देखनेमात्रसे भय लगने लगता है। उदारतापूर्वक वस्त्र-आभूषण दिया दान करने से ये यमदूत प्राणी को कष्ट नहीं देते हैं। तिलसे भरे हुए पात्रका जो दान ब्राह्मण को दिया जाता है, वह मनुष्य के मन, वाणी और शरीरके द्वारा किये गये त्रिविध पापों का विनाश कर देता है। मनुष्य घृतपात्रका दान करनेसे रुद्रलोक प्राप्त करता है।
ब्राह्मण के संसाधनों से युक्त शय्या दान कुरुख मनुष्य स्वर्गलोक में नाना प्रकार की अप्सराओं से युक्त विमान में चढ़कर साठ हजार वर्षतक अमरावती में क्रीडा करके इन्द्रलोकके बाद गिरकर पुनः इस पृथ्वीलोकमें आकर राजाका पद प्राप्त करता है। जो मनुष्य काठी आदि उपकरणोंसे सजे-धजे, दोषरहित जवान घोड़े का दान ब्राह्मण को देता है, उसको स्वर्ग की प्राप्ति होती है। हे खगेश ! दानमें दिये गये इस घोड़ेके शरीरमें जितने रोम होते हैं, उतने वर्ष (कालतक) स्वर्ग के लोकों का भोग दानदाताको प्राप्त होता है। प्राणी ब्राह्मण के सभी उपकरणों से युक्त चार घोड़ों वाले रथ का दान देकरके राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त करता है। यदि कोई व्यक्ति सुपात्र ब्राह्मण को दुग्ध वटी, नवीन मेघके समान वर्णवाली, सुन्दर जघन-प्रदेशसे युक्त और मनमोहक तिलकसे समन्वित भैंस का दान देता है तो वह परलोकमें जाकर अभ्युदयको प्राप्त करता है, इसमें कोई संदेह नहीं है।
तालपत्रसे बने हुए पंखेका दान करने से मनुष्य को परलोकगमनके मार्गमें वायुका सुख प्राप्त होता है। वस्त्र दान करनेसे व्यक्ति परलोकमें शोभासम्पन्न शरीर और उस लोक के वैभव से सम्पन्न हो जाता है। जो प्राणी ब्राह्मण को रस, अन्न तथा अन्य सामग्रियोंसे युक्त घरका दान देता है, उसके वंशका कभी विनाश नहीं होता है और वह स्वयं स्वर्ग का सुख प्राप्त करता है। हे खगेन्द्र! इन बताये गये - सभी प्रकारके दानों में प्राणी की श्रद्धा तथा अश्रद्धा से आयी हुई दानकी अधिकता और कमीके कारण उसके फलमें - श्रेष्ठता और लघुता आती है।
इस लोकमें जिस व्यक्ति ने जल एवं रस का दान किया है, वह आपद्कालमें आह्वादका अनुभव करता है। जिस मनुष्य ने श्रद्धा पूर्वक इस संसारमें अन्न-दान दिया है, वह - परलोकमें अन्न-भक्षणके बिना भी वही तृप्ति प्राप्त करता है, जो उत्तमोत्तम अन्नके भक्षणसे प्राप्त होती है। मृत्यु के सन्निकट आ जानेपर यदि मनुष्य यथाविधि संन्यासाश्रम को ग्रहण कर लेता है तो वह पुन: इस संसारमें नहीं आता, अपितु उसको मोक्ष प्राप्त हो जाता है।
यदि मृत्युके समीप पहुँचे हुए मनुष्य को लोग किसी - पवित्र तीर्थमें ले जाते हैं और उसकी मृत्यु उसी तीर्थमें हो जाती है तो उसको मुक्ति प्राप्त होती है तथा यदि प्राणी मार्गके बीच ही मर जाता है तो भी मोक्ष प्राप्त करता ही है, साथ ही उसको तीर्थंकर ले जानेवाले लोग पग-पग पर यज्ञ करनेके समान फल प्राप्त करते हैं।