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03 / Oct / 2022


मरण के बाद कि क्रियाओं का महत्व क्या है भाग -8

हे गरुड! इस प्रकार मैंने यथाप्रसंग मृत्युका स्वरूपसुना दिया। अब आपके उस दूसरे प्रश्न का उत्तर सुना रहा हूँ। हे पक्षिराज! पूर्वजन्ममें किये गये भांति-भांति के भोगों को भोगता हुआ प्राणी यहाँ भ्रमण करता रहता है। देव, असुर और यक्ष आदि योनियाँ भी प्राणी के लिये सुखप्रदायिनी हैं ।मनुष्य, पशु, पक्षी आदि योनियाँ अत्यन्त दुःखदायिनी हैं। 

हे खगेश्वर! प्राणी को कर्म का फल तारतम्यसे इन योनियों में प्राप्त होता है। हे खगपते । जिस प्रकार इस संसार में नाना भौतिक द्रव्य विद्यमान हैं, उसी प्रकार प्राणियों की विभिन्न जातियाँ भी हैं। वे सभी अपने-अपने विभिन्न कर्मो के प्रतिफल-रूपमें सुख-दुःख एवं नाना योनियोंका भोग करते हैं। तात्पर्य से इन योनियोंमे प्राप्त होता है। 

हे गरुड! प्राणी अपने सत्कर्म एवं दुष्कर्म के फलों की विविधताका अनुभव करनेके लिये इस संसारमें जन्म लेता है। जो महापातकी ब्रह्महत्यादि महापातकजन्य अत्यन्त कष्टकारी रौरवादि नरकलोकोंका भोग भोगकर कर्मक्षयके बाद पुनः इस पृथ्वी पर किन लक्षणों से युक्त होकर जन्म लेते हैं, उन लक्षणों को आप मुझसे सुनें।




हे खगेन्द्र! ब्राह्मण की हत्या करनेवाले महापातकीको मृग, अश्व, सूकर और ऊँटकी योनि प्राप्त होती है। स्वर्णकी चोरी करनेवाला कृमि, कीट और पतंग-योनिमें जाता है, गुरुपत्नी के साथ सहवास करनेवालेका जन्म क्रमश:-तृण, लता और गुल्म-योनिमें होता है । ब्रह्मघाती क्षय रोग के रोगी, मद्यपी विकृतदन्त, स्वर्णचोर कुनखी और गुरुपत्नीगामी चर्म रोगी होता है। जो मनुष्य जिस प्रकारके महापातकियोंका साथ करता है, उसे भी उसी प्रकारका रोग होता है। प्राणी एक वर्षपर्यन्त पतित व्यक्तिका साथ करनेसे स्वयं पतित हो जाता है। परस्पर वार्तालाप करने तथा स्पर्श, नि:श्वास, सहयान, सहभोज, सह आसन, याजन, अध्ययन तथा योनि-सम्बन्धसे मनुष्योंके शरीरमें पाप संक्रमित हो जाते हैं। दूसरे की स्त्री के साथ सहवास करने और ब्राह्मण का धन चुराने से मनुष्य को दूसरे जन्ममें अरण्य तथा निर्जन देशमें रहनेवाले ब्रह्मराक्षसकी योनि प्राप्त होती है। रत्नकी चोरी करनेवाला निकृष्ट योनिमें जन्म लेता है।



जो मनुष्य वृक्षके पत्तोंकी और गन्धकी चोरी करता है, उसे छछुंदरकी योनिमें जाना पड़ता है। धान्यकी चोरी करनेवाला चूहा, यान चुराने वाला ऊँट तथा फल की चोरी करनेवाला बंदरकी योनिमें जाता है। बिना मन्त्रोच्चारके भोजन करनेपर कौआ, घर का सामान चुरानेवाला गिद्ध, मधु की चोरी करने पर मधुमक्खी, गायकी चोरी करने पर गोह और अग्निकी चोरी करनेपर बगुलेकी योनि प्राप्त होती है। स्त्रियोंका वस्त्र चुरानेपर श्वेत कुष्ठ और रसका अपहरण करने पर भोजन आदिमें अरुचि हो जाती है। काँसेकी चोरी करनेवाला हंस, दूसरेके धनका हरण करनेवाला अपस्मार रोग से ग्रसित होता है तथा गुरुहन्ता क्रूरकर्मा बौना और धर्मपत्नी का परित्याग करनेवाला शब्दवेधी होता है। देवता और ब्राह्मण के धन का अपहरण करनेवाला, दूसरे का मांस खानेवाला पाण्डुरोगी होता है।

भक्ष्य और अभक्ष्यका विचार न रखनेवाला अगले जन्ममें गण्डमाला नामक महा रोग से पीड़ित होता है। जो दूसरे की धरोहर का अपहरण करता है, वह काना होता है। जो स्त्री के बलपर इस संसारमें जीवन-यापन करता है, वह दूसरे जन्ममें लगड़ा होता है। जो मनुष्य पतिपरायणा अपनी पत्नी का परित्याग करता है, वह दूसरे जन्ममें दुर्भाग्यशाली होता है। अकेला मिष्टान्न खानेवाला वातगुल्मका रोगी होता है। कोई व्यक्ति यदि किसी ब्राह्मण पत्नी के साथ सहवास करे तो शृगाल, शय्याका हरण करनेवाला दरिद्र, वस्त्र का हरण करनेवाला पतंग होता है। मात्सर्य-दोषसे युक्त होनेपर प्राणी जन्मान्ध, दीपक चुरानेवाला भिखमंगा होता है। मित्र की हत्या करनेवाला उल्लू होता है। पिता आदि श्रेष्ठ जनों की निंदा करने से प्राणी क्षय का रोगी होता है। असत्यवादी हकला कर बोलनेवाला और झूठी गवाही देनेवाला जलोदर-रोगसे पीड़ित रहता है। विवाहमें विघ्न पैदा करनेवाला पापी मच्छरकी योनिमें जाता है। यदि कदाचित् उसे पुनः मनुष्यकी योनि प्राप्त भी होती है तो उसका ओठ कटा होता है। जो मनुष्य चतुष्पथ पर मल-मूत्र का परित्याग करता है, वह वृषल (अपशूद्र) होता है। कन्याको दूषित करनेवाले प्राणीको मूत्रकृच्छ और नपुंसकता का विकार होता है।

जो वेद बेचनेका अधर्म करता है, वह व्याघ्र होता है। अयाज्यका यज्ञ करानेवालेको सुअरकी योनि प्राप्त होती है। अभक्ष्य भक्षण करनेवाला और अग्निको पैरसे स्पर्श करनेवाला प्राणी बिल्ली और वनों का जलानेवाला खद्योत (जुगनू) होता है। बासी एवं निषिद्ध भोजन करनेवालेको कृमि तथा मात्सर्य-दोषसे युक्त प्राणी को भ्रमरकी योनि मिलती है। घर आदिमें आग लगानेवाला कोढ़ी और अदत्तका आंदान करनेसे मनुष्य बैल होता है। गायोंकी चोरी करने पर सर्प तथा अन्नकी चोरी करने पर प्राणी को अजीर्ण रोग होता है। जलकी चोरी करनेपर और जलके स्रोतको विनष्ट करने पर मनुष्य मछली,चातक,होता है।

दूध की चोरी करनेसे बलाकि का और ब्राह्मणको दानमें बासी भोजन देनेसे कुबड़ेकी योनि प्राप्त होती है। है पक्षीन् ! जो मनुष्य फल चुराता है, उसकी संतति मर जाती है। बिना किसीको दिये अकेले भोजन करनेवाला व्यक्ति दूसरे जन्ममें संतानहीन होता है। संन्यासाश्रमका परित्याग करनेवाला (आरूढ़ पतित) - पिशाच और पुस्तक की चोरी करने से प्राणी जन्मान्ध होता है। ब्राह्मणों को - देनेकी प्रतिज्ञा करके जो नहीं देते हैं, उन्हें सियार की योनि प्राप्त होती है। झूठी निन्दा करनेवाले लोगोंको कछुएकी योनिमें जाना पड़ता है। फल बेचनेवाला दूसरे जन्ममे भाग्यहीन होता है। जो ब्राह्मण शूद्र कन्या से विवाह कर लेता है, वह भेड़ियेकी योनि प्राप्त करता है,और जीवोंका मांस खानेपर रोगी होता है। जो लोग भगवान हरि की कथा और साधु जनों की प्रशस्ति नहीं सुनते, उन मनुष्यों को कर्णमूल रोग होता है। जो व्यक्ति परायेके मुँहमें स्थित अन्नका अपहरण करता है, वह मन्दबुद्धि होता है।

जो देवपूजनमें प्रयुक्त होनेवाले पात्रादिक उपकरणोंका अपहारक है, उसे गण्डमाला-रोग होता है दम्भके । वशीभूत होकर जो प्राणी धर्माचरण करता है, उसको - गजचर्मका रोग होता है। विश्वासघाती मनुष्य के शरीर में शिरोऽर्ति-रोग होता है। शिवके धन और निर्माल्यका सेवन , करनेवाला व्यक्ति शिश्नपीड़ासे ग्रसित रहता है। स्त्रियाँ पाप की भागिनी होती हैं और उन्हें उन्हीं जन्तुओ की भार्या होना पड़ता है। उक्त कर्म का फल से प्राप्त नरकका भोग करने के बाद मनुष्य इन्हीं सब योनियों में प्रविष्ट होता है ऐसा निश्चय समझना चाहिए।
             
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