जो मिथ्यावादी, पराक्रमहीन और दुष्ट स्वभाववाला है तथा 'मेरे पास कुछ नहीं है यों सदा कहता रहता है, उसके घर में नहीं जाऊंगी। जो सत्यहीना, धरोहर हड़प लेने वाले झूठी गवाही देने वाले विश्वासघाती और कृतघ्न है, उसके गृह मैं नहीं जाऊँगी। जो चिन्ताग्रस्त, भयभीत, शत्रुके चंगुल में फंसा हुआ, महान् पापी, कर्जदार और अत्यन्त कृपण है-ऐसे पापियोंके घर मैं नहीं जाऊँगी। जो दीक्षाहीन, शोकार्त, मन्दबुद्धि और सदा स्त्रीके वशमें रहनेवाला है तथा जो कुलटा स्त्री का पति अथवा पुत्र है, उसके घर मैं कभी नहीं जाऊँगी।
जो दुष्ट वचन बोलने वाला और झगड़ालू है, जिसके घर में निरन्तर कलह होता रहता है तथा जिसके घरमें सुलक्षना स्त्री का अपमान होता है-ऐसे लोगोंके घर मैं नहीं जाऊँगी। जहाँ श्रीहरिकी पूजा और उनके गुणोंका कीर्तन नहीं होता तथा उनकी प्रशंसामें उत्सुकता नहीं है, उसके घर मैं नहीं जाऊँगी। जो कन्या, अन्न और वेद को बेचने वाला, मनुष्यघाती और हिंसक है, उसका घर नरककुण्डके समान है। अतः मैं उसके घर नहीं जाऊँगी। जो कृपणतावश माता, पिता, भार्या, गुरुपत्नी, गुरु, पुत्र, अनाथ बहन और आश्रयहीन बान्धवोंका पालन-पोषण नहीं करता; सदा धन-संग्रहमें ही लगा रहता है; उसके नरक-कुण्ड-सदृश घरमें मैं नहीं जाऊँगी। जिसके दाँत और वस्त्र मलिन, मस्तक रूखा और ग्रास तथा हास विकृत रहते हैं, उसके घर मैं नहीं जाऊंगी। जो मंदबुद्धि मल-मूत्र का परित्याग करके उसपर दृष्टि डालता है और गीले पैरों सोता है, उसके घर मैं नहीं जाऊंगी।
जो बिना पैर धोये सोता है; गाढ़ निद्रा के वशीभूत होकर सोते समय नंगा हो जाता है तथा संध्याकाल और दिनमें शयन करनेवाला है, उसके घर मैं नहीं जाऊँगी | जो रजस्वला स्त्री के हाथ से बना भोजन ग्रहण करते है उनके घर में नहीं जाउँगी उनके घर रोग और दुःख जायेंगा। जो पहले मस्तकपर तेल लगाकर पीछे उस तेलसे अन्य अंगों का स्पर्श करता है अथवा सारे शरीरमें लगाता है उसके घर मैं नहीं जाऊँगी। जो बिना स्नान किये पुष्प तोड़कर ले आता है, उसके घर मैं नहीं जाऊँगी। जो नखोंसे तृण तोड़ता और नखोंसे भूमि कुरेदता है तथा जिसके शरीर और पैर में मैल जमी रहती है, उसके घर मैं नहीं जाऊँगी। जो अपने द्वारा अथवा पराये द्वारा दी हुई ब्राह्मण की और देवता की वृत्तिका अपहरण करता है, वह ज्ञानशील ही क्यों न हो, उसके घर मैं नहीं जाऊँगी। जो मूर्ख कर्म करके दक्षिणा नहीं देता, वह शठ पापी और पुण्य हीन है; उसके घर मैं नहीं जाऊंगी। जो मन्त्र विद्या (झाड़-फूंक)-से जीविका चलानेवाला, ग्रामयाजी (पुरोहित), वैद्य, रसोइया और देवल (वेतन लेकर मूर्ति-पूजा करनेवाला) है | उसके घर मैं नहीं जाऊँगी। जो ब्राह्मण ना होकर ब्राह्मण की कन्या से विवाह करता है उसके घर में नहीं जाउँगी ,उसके घर रोग, क्लेश और दरिद्रता जायेंगी। जो दिनमें स्त्री प्रसङ्ग करता है, उसके घर मैं नहीं जाऊँगी। जो मलेच्छों के घर भोजन करते हैं उनके घर मैं नहीं जाऊँगी। वह दरिद्रता जायेंगी ।
इतना कहकर महालक्ष्मी अन्तर्धान हो गयीं। फिर उन्होंने देवताओं के गृह तथा मृत्युलोककी ओर देखा। तब सभी देवता और मुनिगण आनन्दपूर्वक महालक्ष्मी को प्रणाम करके शीघ्र ही अपने-अपने वासस्थानको चले गये। उस समय उनके गृहों को शत्रुओं ने छोड़ दिया था और वे सुहृदोंसे परिपूर्ण थे मुने! फिर तो स्वर्गमें दुन्दुभियाँ बजने लगी और फूलोंकी वर्षा होने लगी। इस प्रकार देवताओं ने अपना राज्य और स्थिरा लक्ष्मी को प्राप्त किया वत्स! इस प्रकार मैंने लक्ष्मी के उत्तम चरित्रका, जो सुखदायक, मोक्षप्रद और साररूप है, वर्णन कर दिया।